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________________ १ सागारधर्मामृत सटीक आइ.(धर कृत ।) ६ प्रद्युम्नचरित महासेनाचार्यकृत ॥) २ लघीयस्त्रयादिसंग्रह अकलंभट्टकृत ) ७ आराधनासार सटीक देवसेनाचार्य कृत ।।। ३ पार्श्वनाथचरित वादिराजसूरि कृत ॥) ८ जिनदत्तचरित्र, गुणभद्र कृत )॥ ४ विक्रान्त कौरवीय नाटक हस्तिमल्ल कृत।) ९ चारित्रसार चामुण्डराय कृत ५ मैथिलीपरिणय नाटक , ।) १० प्रमाणनिर्णय वादिराजसूरि कृत (छप रहा है ) बच्चोंके सुधारनेके उपाय । इसमें बच्चोंकी आदतें सुधारने, उन्हें सदाचारी और विनयशील बनाने, बुरेसे बुरे स्वभावके लड़कोंको अच्छे बनाने, उपद्रवियों और चिड़चिड़ोंको शान्त शिष्ट बनानेके अमोघ उपाय बतलाये गये हैं । प्रत्येक माता पिताको इसे पढ़ डालना चाहिए । इसके अनुसार चलतेसे उनका घर स्वर्ग बन जायगा। मू० ॥ कोलम्बस । - अमेरिका खण्डका पता लगानेवाले असम साहसी कर्मवीर कोलम्बसका आश्चर्यजनक और शिक्षाप्रद जीवनचरित । अभी हाल ही छपकर तैयार हुआ है । नवयुवाओंका अवश्य पढ़ना चाहिए । मूल्य ।।।) मानवजीवन। सदाचार और चरित्रसम्बन्धी अनेक अँगरेजी, मराठी, गुजराती, बंगला पुस्तकोंके आधारसे यह ग्रन्थ रचा गया है। सदाचारकी शिक्षा देनेके लिए और सच्चे मनुष्योंकी सृष्टि करनेके लिए यह ग्रन्थ बहुत अच्छा है। इस ग्रन्थके बिना कोई घर, कोई पुस्तकालय, और कोई मन्दिर न रहना चाहिए । भाषा बहुत ही सरल और स्पष्ट है । मूल्य १-) कपड़ेकी जिल्दका १॥)। मैनेजर, जैनग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, गिरगांव-बम्बई. उदासीके समय मन प्रसन्न करना हो; और घर बैठे बिठाये मनोरंजक; चित्ताकर्षक, हास्यो. त्पादक चित्र व लेख देखने व पढ़नकी इच्छा हो तो ‘जैन संसार' मँगवाइए। जातीय कुरीतियाँ समझनी हों; उनसे छूटनेका प्रयत्न करना हो; और अपने देशके, समाजके । और धर्मके पूज्य पुरुषोंके दर्शन करने हों तो तत्काल ही २) रु. का मंनिआर्डर भेज दीजिएं अथवा २७) की वी. पी. भेजनेकी सूचना दीजिए. जैनसंसारका खास अंक । लगभग डेढ सौ पेजका होगा । अंदर आठ दस जैन समाजके मुख्य २ महात्माओंके और नेताओंके चित्र होंगे। साथ ही हास्योत्पादक और मनमोहक चित्र भी होंगे । एक प्रतिका मूल्य-) होगा; परन्तु जो संसारके ग्राहक होंगे उनको यह अंक मुफ्तमें मिलेगा। ग्राहकोंको एक सुभीता यह भी होगा, कि निम्नलिखित पुस्तकें हरेक ग्राहकको आधे मूल्य में मिलेंगी। पूरा मूल्य इस प्रकार है। १ महेन्द्र कुमार;-) २ दलजीतसिंह; ॥) ३ राजपथका पथिक; ।) १ चम्पा ) ____ मैनेजर, जैनसंसार, जुबिलीबाग ताडदेव, बम्बई । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522833
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size4 MB
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