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________________ ७४ जैनहितैषी [भाग १३ वही पूज्य महापुरुषोंका रक्त उबल पड़ेगा । यदि स्नान करनेके पश्चात् खुरखुरे कपड़ेसे शरीर और कुछ नहीं तो ज्ञानके प्रसारको तो आप मल कर साफ करनेसे बड़ा लाभ होता है। क्योंअपना एक आवश्यक कर्म समझने लगेंगे; आव- कि, ऐसा करनेसे शरीरमें चर्मज रोग पैदा नहीं श्यकता है तनिक निष्पक्ष विचारकी। होते । साधारणतया हम लोग भोजन करनेके ___ "कुछ ऐसे ही विचारोंकी परिणामस्वरूपा यह पहले ११ या १२ बजे तक स्नान करते हैं। जैनपाठशाला है । इसके संचालकोंका सदा यही यह ठीक है। कुछ लोग बिल्कुल तड़के और कुछ प्रयत्न रहा है कि इसके द्वारा बालकोंको समाज लोग सूर्यके निकलनेके पहले ही स्नान कर लिया और धर्मके प्रति अपना कर्त्तव्य ज्ञात हो सके। करते हैं। यह भी अच्छा है, किन्तु कोमलप्रकृअतः लौकिक विद्याओंके अतिरिक्त यहाँ पर तिके और दुर्बल मनुष्योंको तड़केका स्नान लाभधर्मशिक्षा भी सब छात्रोंको दी जाती है। यहाँ तक दायक नहीं है । ऐसा करनेसे अनेक समय उन्हें कि इसमें विधर्मीय बालक भी जैनधर्मके मूल सि- हानि पहुँच जाया करती है । जहाँ शीतज्वरदान्तोंको पढ़ते और सीखते हैं। जिस तिस प्रकार की बीमारी ज्यादा होती है यहाँके रहने प्रयत्न करके तीन वर्ष में इस पाठशालामें मिडिल वालेको भी तड़केके स्नानसे बचना चाहिए । यानी ८ वीं कक्षा खोल दी गई है। और पढ़ाई तड़के स्नान करने में एक और भी असुविधा है । सब सरकारी मदरसोंके समान होती है, धर्म- वह यह कि काम करनेके पीछे स्नान न करनेसे शिक्षा विशेष है। मन और शरीर साफ नहीं मालूम पड़ता । “ कालिजोंके स्थापनसे पहले हाईस्कूलोंका यदि फिर एक दफा स्नान किया जाय तो दो बारस्थापन ही आवश्यक है और जहाँ तक हमें ज्ञात का स्नान करना भी कई बार सह्य नहीं होता। है, अभी तक जैनसमाजका कोई हाईस्कल इस कारण एक बार ही स्नान करना ठीक है। नहीं है । ' इस पाठशालाको बहुत सुगमतासे अधिक ठंडे और अधिक गर्म पानीसे भी स्नान हाईस्कूलमें परिणत कर सकते हैं ' ऐसा बहुतसे न करना चाहिए। ऐसा करनेसे शरीरकी शक्ति निरीक्षकोंने भी कहा है । अतः अब इस बातका कम हो जाती है और दुर्बलता आ जाती है । प्रयत्न है कि शीघ्र ही इसमें मैट्रिक तककी ताजा पानी स्नानके लिए सबसे उत्तम है। नदीकक्षायें खोल दी जावें।" में स्नान करनेसे बड़े लाभ हैं, किन्तु कमजोर आदमियोंको नहीं । उन्हें नदीमें स्नान न करना चाहिए, बल्कि अपने घर पर ही ताजे स्नान। अथवा गुनगुने पानीसे स्नान करलेना चाहिए । नदीके अभावमें किसी बड़े जलाशयमें भी [ले०, बाबू श्यामलालजी जैन।] स्नान करना लाभदायक है । बहुत देर तक जान करनेसे शरीर पवित्र हो जाता है ३ स्नान न करना चाहिए । क्यों कि, पानीमें आधिक समय तक रहनेसे सर्दी लग जाती 'अत एव स्नान करना चाहिए । है। इससे ज्वर और खाँसी पैदा होकर शरीर वास्तवमें स्नान क्या वस्तु है और इसका करना दुर्बल हो जाता है। ठंडी और तेज हवा चलते कहाँ तक लाभदायक है, उसीका विचार इस समय जाड़ेके दिनोमें बंद घरमें स्नान करना लेखमें किया जायगा । स्नान कैसे करना चाहिए, चाहिए। ऐसा न करनेसे शरीरमें अनेक पीड़ाओंके इसका दिग्दर्शन कराना ही इस लेखका उद्देश्य है। हो जानेका डर है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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