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________________ अङ्क २] मेरठकी जैनपाठशाला। ७१ मेरठकी जैनपाठशाला है कि “अजैनोंमें तो इतने उदारचेता हैं कि वे जैनसंस्थाका कार्य करते हैं और स्वयं जैनोंमें इतना और भी स्वार्थत्याग नहीं कि अपनी संस्थाकी कभी कभी प्रो० सेठीका वक्तव्य । खबर भी ले लिया करें।" इसे जैनसमाजका बड़ा भारी दुर्भाग्य समझना चाहिए कि उसके अधिका श लोग तो शिक्षाके महत्त्वको ही नहीं समझते मेरठ छावनीमें एक जैनपाठशाला है। हैं और जो लोग समझते हैं-उच्च श्रेणीकी शिक्षा "उसकी तीसरे वर्षकी १९१५-१६ की- पाये हुए हैं-वे अपनी शिक्षासे दूसरोंको फायदा रिपोर्ट, उपमंत्री बाबू कल्याणदासजी जैनी नहीं पहुँचाना चाहते-केवल अपने स्वार्थके ही बी. ए. ने हमारे पास भेजी है । पाठशालामें लिए जीते हैं। यह दशा केवल मेरठकी ही नहीं १४१ विद्यार्थी दर्जरजिस्टर हैं जिनमें है; सभी जगहके जैन शिक्षित समाज-सेवाके ३४ जैन और शेष अजैन हैं। लगभग १२५ कार्यसे उदासीन दिखलाई देते हैं। यह बड़ी विद्यार्थी प्रतिदिन हाजिर रहते हैं। कार्यकर्त्ता- शोचनीय अवस्था है । इसे जितनी जल्दी ओंमें जैन और अजैन दोनों हैं । पढ़ाई सरकारी हो, बदलनी चाहिए। स्कूलोंके अनुसार होती है। जैनधर्मकी शिक्षा विशेष मेरठकी उक्त संस्था बहुत ही थोड़े खर्चमें दी जाती है। अजैन विद्यार्थी भी जैनधर्मकी शिक्षा बहुत उत्तमतासे चल रही है। यदि अन्यान्य प्राप्त करते हैं। कक्षायें आठ हैं,जिनमें ४ डिस्ट्रिक्ट नगरोंमें भी इसी ढंगकी पाठशालायें खोली जायँ, बोर्डकी और शेष पाठशालाकी देखरेखमें चलती तो बहुत लाभ हो सकता है और ये धीरे धीरे हैं। अँगरेजीकी मिडिल कक्षा इसी साल खोली बढ़ती हुई हाईस्कूल बन सकती हैं । इस गई है । १३) रूपये मासिक डिस्ट्रिक्ट बोर्डसे, तरह थोड़े ही समयमें जैनसमाजके कई हाईलगभग ४५ ) रु० मासिक फीससे और स्कूल बन सकेंगे और वह दिन बहुत शेष ६७ ) रु० के लगभग मासिक चन्दे दूर नहीं रहेगा जब हम एक अच्छा जैनआदिसे प्राप्त हो जाता है। इस तरह बहुत ही कालेज स्थापित करनेके लिए समर्थ हो सकेंगे। थोड़े खर्चमें यह एक अच्छी संस्था चल रही है। केवल धर्मशिक्षाके ही लिए पाठशाालायें खोलने यदि संस्थाके पास केवल पाँच हजार रुपयेका और उनमें सौ सौ दो दो सौ रुपया मासिक खर्च ही ध्रुवफण्ड हो और सहायता वर्तमानकी अपेक्षा करनेकी अपेक्षा इस ढंगकी पाठशालायें खोलनाकुछ अधिक मिलने लगे, तो यह हाईस्कूल बना जिनमें साधारण शिक्षाके साथ साथ धर्मशिक्षा दी जा सकती है, पर निरीक्षकोंकी सम्मतियोंसे भी दी जाय और जैन अजैन सबको लाभ होमालूम होता है कि जैन भाइयोंका इस ओर बहुत कहीं अच्छा है। ही कम ध्यान है । और तो क्या मेरठके शिक्षित पाठशालाकी रिपोर्टके प्रारंभमें श्रीयुत बाबू जैन-वकील बैरिस्टर आदि भी इसके कार्यमें निहालकरणजी सेठी एम. एस सी. का जो हाथ नहीं बँटाते । यदि वे अन्य अजैन महाश- वक्तव्य छपा है, वह बहुत महत्त्वका है । योंके बराबर ही इस ओर ध्यान दें, तो बहुत अत एव हम उसके मुख्य भागको यहाँ उद्धृत उन्नति हो सकती है। प्रो० निहालकरणजी सेठीक कर देते हैं और आशा करते हैं कि पाठक लिखे अनुसार यह सचमुच ही बड़ी लज्जाकी बात उस पर विचार करेंगेः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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