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________________ ३० जैनहितैषी [ भाग १३ आपका जीवनचरित आरेकी नागरीहितैषिणी थे । पयमें आपने लावनियाँ बहुत बनाई हैं, पत्रिकामें निकल चुका है। जिनमेंसे कुछ ‘ज्ञानानन्दरत्नाकर' के नामसे ४ मि० जैन वैद्य । मि० जैन वैद्यका __ छपी हैं । गद्यमें आपने जैन प्रथम-द्वितीय-तृतीय.' नाम जवाहिरलाल था। आप खण्डेलवाल जैन थे। प 1 चतुर्थ पुस्तक और हिन्दीकी पहली दूसरी-तीसरी “वैद' आपका गोत्र था। आपका जन्म संवत् । - आदि अनेक पुस्तकें लिखी हैं । कई पुस्तकों१९३७ में हुआ था । आपने अंगरेजी तो की टीकायें और पयानुवाद भी आपने किये हैं। म्याट्रिक तक ही पढ़ी थी, पर विद्याभिरुचिके आप पुस्तकप्रकाशक थे। सैकड़ों छोटी बड़ी कारण उसमें उन्नति अच्छी कर ली थी। रायल ! पुस्तकें आपने छपाई थीं । आपके विचार सुधाएशियाटिक सुसायटी और थियोसोफिकल रकोंके ढंगके थे, इस कारण सर्व साधारणसे सुसायटीके आप मेम्बर थे । बंगला उर्दू, मराठी भा " आपकी बहुत ही कम बनती थी । जैन कथाऔर गुजराती भी आप जानते थे । हिन्दीके ग्रन्थोंकी असंभव बातों पर आपकी अश्रद्धा थी बड़े ही रसिक थे और नागरीके प्रचारका सदेव और जैनभूगोलके सिद्धान्तोंका आप विरोध किया यत्न किया करते थे। आपने हिन्दीके कई पत्र करते थे। इस विषयमें उस समय आपने लाहो. निकाले, पर वे चल नहीं सके। आपका सबसे रकी 'जैनपत्रिका ' में कुछ लेख भी प्रकाशित 'नामी पत्र 'समालोचक' निकला। उसे आपने कराये थे। आपके पुत्र बाबू नन्दकिशोरजी चार सालतक बड़े परिश्रम और अर्थव्ययसे बी ए. असिस्टेंट सर्जन हैं । उन्होंने आपके चलाया । इससे आपकी हिन्दी संसारमें बड़ी पुस्तकालयकी तमाम पुस्तकें कटमीकी जैनपाठख्याति हुई । इस पत्रमें बड़े ही मार्केके लेख शालाको दे डाली हैं। निकलते थे। छात्रावस्थामें इन्होंने कमलमोहिनी- वर्तमान लेखक । भँवरसिंह नाटक, व्याख्यानप्रबोधक और ज्ञानवर्णमाला नामक तीन पुस्तकें लिखी थीं । नागरी बाबू सूरजभानजी । आप देवबन्द जिला प्रचारिणीसभाके ये बड़े सहायक थे । इन्होंने सहारनपुरक - सहारनपुरके रहनेवाले अग्रवाल जैन हैं । वकील जयपुरमें एक 'नागरी भवन' नामक पुस्तकालय हैं। लगभग २०-२२ वर्षसे आप हिन्दीकी सेवा खोला था, जो अबतक अच्छी दशामें है। आपने कर रहे हैं । जैनसमाजमें नई जागृति उत्पन्न 'संस्कृत कविपंचक' आदि हिन्दीके कई अच्छे करनेवालोंमेंसे आप एक हैं । जिससमय सारा ग्रन्थ अपने खर्चसे प्रकाशित किये थे। आपकी जैनसमाज जैनग्रन्थोंके छपानेका विरोधी था, मृत्यु संवत् १९६६ में हो गई। उससमय आपने बड़े साहसके साथ इस कामको उठाया और हरतरहके कष्ट उठाकर जारी मुशी नाथूरामजी लमेचू । ये करहल रक्खा । आप अपनी धुनके बड़े पक्के हैं । हिन्दी 'जिला मैनपुरीके रहनेवाले थे, पर पीछे कटनी जैनगजटके जन्मदाता आप ही हैं । आपने कई मुड़वारामें आ रहे थे । कोई दशवर्ष हुए जब वर्षतक उसे साप्ताहिक रूपमें बिना किसीकी आपकी मृत्यु हो गई । छापेके प्रचारकोंमें आ- मददके चलाया । इसके बाद दो मासिकपत्र 'पभी एक अगुए थे। इसके कारण आपने भी खूब आपने और निकाले जो कुछ वर्ष चलकर बन्द गालियाँ सुनी, अपमान सहन किया और मार होगये। द्रव्यसंग्रह, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, परमात्मतक खाई ! आप गद्य और पद्य दोनों लिखते प्रकाश आदि कई ग्रन्थोंके हिन्दी अनुवाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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