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________________ २८ चरित्र सरस्वतीमें निकल चुका है । शायद इनके बाद इस सम्प्रदाय में कोई ऐसा उद्भट विद्वान् - नहीं हुआ । इनका जन्म वि० सं० १८९३ के लगभग हुआ था और देहोत्सर्ग १९५३ में । आपकी जन्मभूमि पंजाब थी । पाश्चात्यदेशोंतक आपकी ख्याति थी । आपके शिष्य श्रीयुत वीरचन्द राघवजी गांधी बी. ए. बैरिस्टर एट ला, चिकागो ( अमेरिका ) की धर्ममहासभा में गये थे। उन्होंने वहाँ आपकी बहुत ही प्रतिष्ठा बढ़ाई थी । आपकी ' चिकागो - प्रश्नोत्तर' नामकी पुस्तक उसी समय के प्रश्नोत्तरों की है । आपने अपनी सारी रचना हिन्दीमें की है आपके कई बड़े बड़े ग्रन्थ हैं । उनमें जैनतत्त्वादर्श, तत्त्वनिर्णयप्रसाद, और अज्ञानतिमिरभास्कर मुख्य | आप स्वामी दयानन्दके ढंगके विद्वान थे । खण्डन मण्डनसे आपको बहुत प्रेम रहा है। अन्य धर्मों और सम्प्रदायों पर आपने बहुत आक्रमण किये हैं । आपकी भाषा में कुछ पंजाबीपन मिला हुआ है, पर वह समझमें अच्छी तरह आती है। श्वेताम्बर सम्प्रदायमें आपकी स्मृतिकी रक्षा के लिए बहुत प्रयत्न किये गये हैं । कई सभायें आपके नामसे चल रही हैं और कई - मासिकपत्र और ग्रन्थमालायें भी आपके स्मरणार्थ निकलती हैं । आपके प्रायः सभी ग्रन्थ छपकर प्रकाशित हो चुके हैं । उनका प्रचार खूब है। 1 1 जैनहितैषी - ६ यति श्रीपालचन्द्र । ये यति बीकानेरके रहनेवाले थे। सुयोग्य थे। कई वर्षोंतक अनवरत परिश्रम करके आपने 'जैन सम्प्रदाय शिक्षा ' नीमका ग्रन्थ बनाया था । यह ग्रन्थ आधा भी न छप पाया था कि आपका देहान्त हो गया । आपके ग्रन्थको अब निर्णयसागर प्रेसके मालिक चार रुपयेमें बेचते हैं। बोलचा - लकी शुद्ध हिन्दीमें इसकी रचना हुई है । इसमें विविध विषयोंका संग्रह है । यतिजीका देहान्त ' हुए केवल ७-८ वर्ष हुए हैं I Jain Education International [ भाग १३ ७ चंपाराम । ( पाटननिवासी ) । गौतमपरीक्षा ( सं० १९९६), वसुनन्दिश्रावकाचार, चर्चासागर, योगसार । ये सब ग्रन्थ गद्यमें हैं । ८ छत्रपति । ( पद्मावतीपुरवार ) । द्वादशानुप्रेक्षा ( १९०७ ) मनमोदनपंचश ( १९१६ ), उद्यमप्रकाश ( १९२२), शिक्षाप्र धान । ये सब ग्रन्थ पयमें हैं । ये अच्छे कवि मालूम होते हैं । इनकी मनमोदनपंचशती छपकर प्रकाशित हो रही है । ९ जौहरीलाल शाह | पद्मनन्दि पंचविंशतिकाकी वचनिका ( १९१५ ) । १० नन्दराम । योगसारवचनिका (सं० १९०४), यशोधरचरित्र छ० और त्रैलोक्यसार पूजा । गयमें सुकमालचरित्र, महीपालचरित्र, समाधितंत्र, ११ नाथूलाल दोसी । ( जयपुर निवासी) । और पयमें दर्शनसार, परमात्माप्रकाश, सिद्धप्रियस्तोत्र, रत्नकरण्ड श्रावकाचार | बोधक ( विशालग्रन्थ ), उत्तरपुराण वचनिका १२ पन्नालाल ( दूनीवाले ) । विद्वज्जनऔर अनेक पूजापाठ | १३ पारसदास । ( जयपुर निवासी ) । पारसविलास ( छ० ), ज्ञानसूर्योदय और सार - चतुर्विंशतिकाकी वचनिका । १४ फतेहलाल । (जयपुरी ) । विवाहपद्धति, दशावतारनाटक, राजवार्तिकालंकार, रत्नकरण्ड, न्यायदीपिका और तत्त्वार्थ सूत्रकी, वचनिकायें । १५ बक्ताबरमल - रतनलाल । (दिल्लीनिवासी ) । जिनदत्तचरित्र, नेमिनाथपुराण, चंन्द्रप्रभपुराण, भविष्यदत्त चरित्र, प्रीतिंकरचरित्र, प्रयुनचरित्र, व्रतकथाकोश आदि छन्दोबद्ध ग्रन्थ । १६ मन्नालाल बैनाड़ा । प्रद्युम्नच वचनिका ( १९१६ ) । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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