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________________ धर्मसंग्रहश्रावकाचार--अनुमान चार सौ पद्मनन्दीपञ्चीसी-यह बड़ा सुन्दर अन्ध है । वर्ष पहले मेधावी नामके एक बड़े भारी विद्वान् हो इसमें-धर्मोपदेशामृत, दानोपदेश, श्रावकधर्म, एकत्वगये हैं। उन्होंने अपने समय तकके विविध आचाकि भावना, आलोचना, ब्रह्मचर्य, क्रियाकाण्ड, परमार्थरचे हुए श्रावकाचार ग्रन्थोंका अध्ययन एवं मनन विंशति, पूजाष्टक, जिनदर्शन-आदि कोई पच्चीस करके और वर्तमानदेशकालके अनुसार आचारविषयक अधिकार हैं। सबमें वर्णन बड़ा ही मर्मस्पर्शी है । अनुभव संपादन करके विस्तारके साथ इस ग्रन्थकी कीमत चार रुपये। रचना की है । भा० टी० उदयलालजी काशलीवालने पुरुषार्थसिद्धथुपाय भाषाटीका-यह श्रीकी है। मूल्य दो रुपये। अमृतचन्द्रस्वामी विरचित प्रसिद्ध शास्त्र है । इसमें धर्मरत्नोद्योत-आरा निवासी बाबू जगमो- आचारसंबन्धी बड़े २ गूढ रहस्य हैं,विशेष कर हिंसाका हनदासजी कृत यह कविता ग्रन्थ है। इसमें उपासना, स्वरूप बहुत खूबीके साथ दरसाया गया है, यह एक प्रमाण, प्रमेय, भेदविज्ञान, उद्यमोपदेश, सुव्रतक्रिया, बार छपकर बिक गया था इस कारण फिरसे संशोधन द्वादशानुप्रेक्षा, समाधिभावना और आराधना इस कराके दूसरीवार छपाया गया है। मूल्य एक रु० । प्रकार नौ अधिकार हैं । मूल्य एक रुपया। पुरुषार्थसिद्धयुपाय-मूल और सांक्षप्त भाषा. धर्मप्रश्नोत्तरश्रावकाचार-प्रश्नोत्तर रूपसे टीका । मूल्य चार आने । श्रावकाचारका वर्णन बहुत उत्तम तरहसे किया गया प्रवचनसार--श्रीअमृतचन्द्रसूरिकृत तत्त्वप्रदीहै । मूल्य दो रुपया। पिका संस्कृत टीका जो कि यूनिवर्सिटीके कोर्समें धनंजयनाममाला-मूल मात्र । मूल्य सवा दाखिल है तथा श्रीजयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति संकृत आना। टीका और बालबोधिनी भाषाटीका इन तीन टीकाओं नागकुमार-चरित-नागकुमार कैसा कर्तव्य- सहित छपाया गया है । इसके मूलकर्ता श्रीकुन्द्रकुपरायण पुरुषरत्न था । कैसा परोपकारी और शूरवीरन्दाचार्य हैं । यह आध्यात्मिक ग्रन्थ है। मूल्य तीन रु. था, इस बातका बड़ी अच्छी तरहसे इस पुस्तकमें प्रदानचरित-(सार ) बाबू दयाचंद गोयलीय वर्णन है । कीमत छह आने । कृत। मूल्य छह आने । परमात्मप्रकाश--यह ग्रन्थ योगीन्द्रदेव कृत पंचस्तोत्रभाषा-इसमें भक्तामर, कल्याणमंदिर, प्राकृत दोहाओंमें है । उसके नीचे संस्कृत छाया है एकीभाव, विषापहार और भूपालचौवीसी ये पांच और उसके नीचे ब्रह्मदेव कृत संस्कृत टीका है और भाषा स्तोत्र हैं। म. दो आने । संस्कृत टीकाके अनुसार हिन्दी भाषा टीका की गई पंचास्तिकायसमयसार-अबकी बार यह है। अध्यात्मका अपूर्व ग्रन्थ है। मूल्य तीन रु०। ग्रन्थ बड़ी सुन्दरतासे छपा है। पहले इसमें संस्कृत .. परमात्मप्रकाश-मूल प्राकृत दोहा ओर उसका टीका एक ही थी, पर अबकी बार एक और सरल सरल हिंदी अर्थ । मूल्य ।।) आने । टीका लगा दी गई है। दोनों टीकाके नीच स्व.पंडित पवनदूतकाव्य-उज्जैनके राजा विजयनरेशकी हेमराजजीकृत हिन्दी टीकाका वर्तमानकी हिन्दीस्त्री सुताराको एक विद्याधर हरकर ले गया था । भाषामें परिवर्तित रूपान्तर है । यह भगवान् सीके आधार पर यह ग्रन्थ रचा गया है। कीम। कुन्दकुन्दाचार्यका आध्यात्मिक विषयका सबसे उत्तम चार आने । और महत्वका ग्रन्थ है। कीमत दो रुपये। परीक्षामुख-जैनन्यायमें प्रवेश करने के लिए पंचकल्याणकविधान-पं० वख्तावरलालकृत सबसे पहले यही ग्रन्थ पढ़ाया जाता है। पहले इस २४ तीर्थंकरोंकी पंचकल्याणक पूजाका संग्रह । मूल्य ग्रन्थको केवल संस्कृतमें छपा हुआ होनेसे बहुत कम छह आन । लोग इससे लाभ उठाते थे। पर अब श्रीयुत पं० बालबोध जैनधर्म-पहला भाग ... ) घनश्यामदासजीने इसका हिन्दी अनुवाद भी कर " . दूसरा भाग ... ) दिया है। प्रन्थ बड़ा उपयोगी है। कीमत छह आने। , , तीसरा भाग ... ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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