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________________ ६१६ जैनहितैषी - सन्तोष होता; पर सुनते हैं कि जिस महापुरुदीक्षा दी गई है वह निरा मूर्ख नहीं, तो समझदार भी नहीं है! उसमें ऐसा कोई गुण नहीं है जो आगे विकसित होकर जैनधर्मकी प्रभाना करने में समर्थ हो । यह जानकर पाठकोंको और भी आश्चर्य होगा इस उत्सव के प्रेरक और अनुमोदक मुनि रत्नचन्द्रजी बतलाये जाते हैं जो कि उक्त सम्प्रदाय के साधुओं में सबसे बड़े विद्वान् समझे जाते हैं । ११ हिन्दी गौरव ग्रन्थमाला | इस समय हिन्दी में अच्छे अच्छे ग्रन्थ प्रकाशित करनेके लिए खासा उद्योग हो रहा है। पाठक यह जान कर प्रसन्न होंगे कि सत्यवादीके पूर्वसम्पादक पं० उदयलालजी कासलीवाल ने अभी थोड़े ही समयसे ‘हिन्दी– गौरव ग्रन्थमाला' नामकी माला निकालनेका प्रारंभ किया है जिस में अब तक तीन ग्रन्थ निकाल चुके हैं१ सफल गृहस्थ, अँगरेजी के प्रसिद्ध लेखक हेल्प्स के निबन्धों का अनुवाद | अनुवादक, बाबू खूबचन्दजी सोधिया बी. एएल. टी । २ आरोग्य दिग्दर्शन, महात्मा गाँधी की गुजराती पुस्तकका अनुवाद । अनुवादक, पं० गिरिधर शर्मा | ३ कांग्रेस के पिता मि० ह्यूमकी जीवनी | अनुवादक, बाबू दयाचन्दजी गोयलीय बी. ए. और बाबू चिरंजीलालजी माथुर बी. ए. । पहले दोका मूल्य ग्यारह ग्यारह आने और तीसरेका बारह आने है । तीनों ही ग्रन्थ अच्छे और प्रत्येक मनुष्यके पढ़ने योग्य हैं । ग्रन्थमालाके स्थायी ग्राहकों को ये और आगे निकलनेवाले तमाम ग्रन्थ 'दो तिहाई, मूल्यसे दिये जायँगे । हम अपने हिन्दीप्रेमी ग्राहकोंसे सिफारिश करते हैं कि वे ग्रन्थ 1 Jain Education International मालाके ग्राहक बनकर पण्डितजीके उत्साहको बढ़ावें और विविध विषयके ग्रन्थोंको पढ़कर अपने ज्ञानकी वृद्धि करें । पण्डितजीका ठिकाना 'चन्दावाड़ी पो० गिरगाँव, बम्बई ' है । १२ हिन्दीमें नये जैन पत्र | हिन्दी में नीचे लिखे तीन जैन पत्रोंने जन्म लिया है और हिन्दी भाषाभाषी जैनसमाज की सेवा करना प्रारंभ कर दिया है: १ जैन मार्तण्ड - जैन बालहितैषिणी सभा हाथरसका मुखपत्र | सम्पादक, श्रीयुत मिश्री - लाल सौगानी, हाथरस ( अलीगढ़ ) । पृष्ठ३६, डिमाई अठपजी । वार्षिक मूल्य १ ॥ ) रु० । २ जैन संसार - श्वेताम्बर जैन बरार प्रान्तिक सभाका मुखपत्र | सम्पादक, श्रीयुत कृष्णलाल वर्मा, जुबिली बाग, तारदेव, बम्बई । पृष्ठ ३६ रायल बारह पेजी | मूल्य १ || =) ३ मुनि - महावीर मुनिमण्डल, बोदबड़ (खानदेश) का मुखपत्र | सम्पादक, श्रीयुत विश्वंभरदास गार्गीय, छावनी झांसी । पृष्ठ ३२ डिमाई अठपेज़ी, मू० २) रु० । इनमें पहला दिगम्बर, दूसरा श्वेताम्बर और तीसरा स्थानकवासी सम्प्रदायका पत्र है । हम तीनोंका स्वागत करते हैं और चाहते हैं कि तीनों ही चिरंजीवी होकर जैनधर्म और जैनसमाजका कल्याण करने में समर्थ हों। तीनोंके दो दो तीन तीन अंक निकल चुके हैं। पाठकोंको एक एक नमूनेका अंक मँगाकर देख लेना चाहिए और ग्राहक बनकर सहायता करना चाहिए । सहयोगी जैन मित्र पाक्षिकसे साप्ताहिक हो गया है और अब सूरतसे निकलने लगा है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522829
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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