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लड़ना धर्म है या क्षमाभाव रखना? Chamamminimuinintinimummy
महापुरुष है जो पाप और दुःखसे लड़ता है, लडना धर्म है या क्षमाभाव जो दरिद्रता व अपराध पर विजय प्राप्त करता है-जो परोपकार करता हुआ आत्म कल्याण कर
रखना ? निर्वाण प्राप्त करता है । हमारी जाति तथा हमारे (ले०. श्रीयुत वाडीलाल मोतीलाल शाह ।) धर्मकी ओर हमारी उदासीनता हमारे लिए लज्जाकी
____ सम्पादक महाशय, मुझे आशा है कि जात है। हमें स्वतंत्रताके साथ अपने विचारोंको प्रकट करते हुए जाति तथा धर्मसेवाका कार्य करना ।
- आपकी तथा आपके अन्य स्वधर्मी भाइयोंकी चाहिए । यद्यपि हमारी संख्या थोडी है और हमारा रिसे शर्षिकके प्रश्नका यही उत्तर कार्य महान है तथापि हमें स्वर्गवासी रानडेके ये मिलेगा कि 'क्षमाभाव रखना धर्म है ।। शब्द सदा याद रखने चाहिए-अर्थात्, यद्यपि क्योंकि शास्त्र हमेशा यही उपदेश देते हैं । संख्याकी शक्ति हमारे पास नहीं तथापि हमारे कि क्रोध मान माया आदिको जैसे बने तैसे उद्देशके लिए हमारे सच्चे कार्यकर्ताओंके विश्वासका कम करो। आप भी यही कहेंगे कि धर्म तो उत्साह, भक्तिकी एकाग्रता तथा स्वार्थत्याग कर- निरुपद्रवी-किसीको जरा भी चोट न पहुँचावे, नेके लिए तत्परताकी शक्ति हमारे पास है कार्य- किसीको भी और मनसे भी दु:ख न पहुँचावे, कर्ता चाहे कम हों, परन्तु अंतमें विरोधके ऊपर ऐसा है । परन्तु धर्मकी यह पवित्र व्याख्या उन्हें जय अवश्य प्राप्त होगी।" अतएव, महाशयो, करते समय आपका हृदय तो यही कहता होगा हमें अपने उद्योगके फलकी अल्पताको देख कि 'निरुपद्रव धर्मकी रक्षाके लिए तो उपद्रवका निराश नहीं होना चाहिए । यद्यपि हम वास्तविक ही हथियार आवश्यक है।" अभिप्राय यह कि कार्य अधिक नहीं कर सके हैं तथापि हमारे उत्साहा जोयह मानते हैं कि 'धर्म स्वयं निरुपद्रव है, वे प्रधान-मंत्रीके शब्दोंमें एसोसिएशनके कामका अधिक भाग उन परिवर्तनोंमें है जो उसने हमारी समाजके
लोक भी उस धर्मकी रक्षा-आस्तित्वके लिए विचारोंमें पैदा किया है । हमें अपनी कौम तथा उपद्रव (क्रोध, द्वेष, कुटिलता, आदि अनिष्ट धर्मके भविष्यमें अटल विश्वास रखना चाहिए। कार्य ) का उपयोग करते हैं । ऐसी दशामें या यद्यपि इतिहास बताता है कि
तो आपको धर्मकी व्याख्या बदलनी पड़ेगी और “ संसारमें किसका समय है एकसा रहता सदा. उसके निर्दोष निरुपद्रव स्वरूपके बदले कोई हैं निशि दिवासी घूमती सर्वत्र विपदा संपदा । और ही प्रकारका स्वरूप मानना पड़ेगा, या जो आज राजा बन रहा है रंक कल होता वही। अपने निरुपद्रव धर्मकी रक्षाके लिए आपलोग जो आज उत्सवमग्न है कल शोकसे रोता वही ॥" जिन उपद्रवी अस्त्र शस्त्रोंको काममें लाते हैं वे परन्तु साथहीमें इतिहास यह भी बताता है कि- फेंक देना पडेंगे । दोमेंसे एक अवश्य ही " होता समुन्नतिके अनंतर सोच अवनतिका नहीं, करना पड़ेगा। हाँ सोच तो है जो किसीकी फिर न हो उन्नति कहीं। आप पठेंगे कि हम धर्मको निरुपद्रव तो चिन्ता नहीं जो व्योमविस्तृत चन्द्रिकाका ह्रास हो, .
, आवश्य मानते हैं; परन्तु उसकी रक्षाके लिए चिन्ता तभी है जब न उसका फिर नवीन विकास हो॥" महाशयो इतिहासका यह उपदेश हमें स्मरण
उपद्रवी अस्त्र शस्त्रोंका उपयोग कहाँ करते हैं ? रख अपनी कौम व धर्मकी उन्नतिके लिए सतत महाशय, मुझ माफ काजए आर कहन उद्योग करना चाहिए ।
दीजिए कि आप उनका उपयोग करते हैं; और केवल आपके ही विषयमें नहीं किन्तु सारे ही
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