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________________ Auru BABAALBUMAOBABILIARI सभापतिका व्याख्यान । mmmmmmmmmmmmmmmmm जाति-पंचायतें इतनी गिरी दशामें हैं कि उन्हें अज्ञानकी कमी होती जारही है । हिन्दुओंमें प्रति सुधारनेके उद्योगमें जो काल लगेगा तबतकसंभव सहस्रमेंसे सन् १८९१ में ८३, सन् ०१ में ९४ है कि इनका अस्तित्व ही न रहे । तब क्या हमें तथा सन् ११ में १०१, सिक्खोंमें प्रति सहस्रमेंसे निराश होकर सामाजिक-सुधारका कार्य ही छोड़ सन् ९१ में ८३, सन् ०१ में ९८ तथा सन् ११ देना चाहिए, और यदि नहीं तो फिर हमारी में १०६; बौद्धोंमें प्रति सहस्र सन् ९१ में ४११, आशाका आधार क्या होना चाहिए ? मैं तो यही सन् ०१ में ४०२ तथा सन् ११ में ४०४; पारसिकहूंगा कि हमें निराश न होना चाहिए, तथा हमारी योंमें प्रति सहस्रमेंसे सन् ९१ में ५८३, सन् ०१. आशाका आधार होना चाहिए हमारी भावी संतान में ७५६ तथा सन् ११ में ७८२; मुसलमानोंमें -हमारे होनहार युवा । महाशयो, यह आशा प्रति सहस्रमेंसे सन् ९१ में ५४, सन् ०१ में ६० करना कि जो पुरुष जीवनभर अफीम खाता आया तथा सन् ११ में ६९; ईसाइयोंमें प्रति सहस्रमेंस हो वह अफीम खाना वृद्धावस्थामें छोड़ दे यह सन् ९१ में २७३, सन् ०१ में २९१ तथा सन् निरर्थक है; नवीन पौधोंको. झुकाना सहज है, ११ में २९३ पुरुष पढ़ना लिखना जानते थे । परन्तु एक बढ़े हुए वृक्षको झुकानेकी आशा इससे स्पष्ट है कि शिक्षाके क्षेत्रमें हम अन्य कौमोंके करना व्यर्थ है । x x इसीलिए, महाशयो, पीछे नहीं हैं, तथा पारसियोंके पश्चात् हमारा ही सामाजिकसुधारकी आशा इन जातिमुखियाओंसे नंबर है । इसी प्रकार अँगेरेजी पढ़े लिखोंकी संख्या न कर मैं अपनी आगामी पीढीसे करता हूं। हमारी कौममें भी अन्य कौमोंके मुकाबलेमें ठीक मैं अनुमान करता हूं कि ऐसे ही विचारोंसे ही है। प्रति दशसहस्रमेंसे अँगरेजी पढ़ना लिखना इस महामंडलके संस्थापकोंने इसका नाम आदिमें जाननेवाले पुरुषोंकी संख्या प्रत्येक कौममें इस जैन यंगमेन्स एसोसिएशन रक्खा होगा। यदि हम प्रकार थी:अपनी संतानको-अपने बालक बालिकाओंको- सन् १९०१ में सन् १९११ में उचितरीतिसे शिक्षा देवें तो मुझे विश्वास है कि ये हिन्दुओंमें- .... ६४ ... ही लोग बड़े होनेपर समाजसुधारका प्रचार करेंगे। सिक्खों में- ... ५२ ... ६६ अतएव इस कार्य के लिए जो उद्योग हम अबतक जैनियों में- ... १३४ ... २०२ करते आ रहे हैं उसे जारी रखते हुए अपनी बौद्धोंमें- .... २४ .... ४१ आशाके भावी आधार, अपनी संतानकी उचित पारसियोंमें- ... ४,०७५ ... ४,९५६ शिक्षाकी ओर हमें ध्यान देना चाहिए, और यह मुसलमानोंमें- ... ३२ ... ५१ मुझे हमारी कौममें शिक्षाकी अवस्थाका स्मरण ईसाइयों में- ... १,२८९ ... १,२५६ दिलाता है। इससे यह जान पड़ता है कि जैनियोंकी अपेक्षा प्रिय प्रतिनिधिगण, हमारे लिए शिक्षाका प्रश्न भी हिन्दुओंमें शिक्षाका प्रचार कम है । इसका कारण बहुत बड़े महत्त्वका है x: मनुष्य-गणनाकी रिपोर्टोसे यह है कि हिन्दुओंमें अनेक पिछड़ी हुई जातियां आपको ज्ञात ही होगा कि हमारी कौममें प्रति सम्मिलित हैं जो पूर्णतया अशिक्षित हैं, किन्तु सहस्रमेंसे सन् १८९१ में ४४१, सन् १९०१ में आर्यसमाजियोंमें प्रति सहस्र ३९४ पुरुष पढ़े लिखे ४७० तथा सन् १९११ में ४९५ पुरुष पढ़ना तथा प्रति दश सहस्र ७१९ पुरुष अंग्रेजी पढ़े लिखे लिखना जानते थे, अर्थात् हमारी कोममें प्रतिदिन और ब्रह्मसमाजियोंमें प्रति सहस्र ७३९ पुरुष पढ़े Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522829
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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