SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७८ CHRIMUMBALLIATLABILIRITUABALLIANIMAL जैनहितैषी पड़ता है कि मैंने कहीं पढ़ा था कि मनुष्यगण- अधिकांश ही, सब इसलिए नहीं कि मैंने आपको नाकी सरकारी रिपोर्ट के अनुसार हमारी कौममें ५५ अभी बतलाया कि १५ से ४० वर्षकी आयुकी जातियोंकी मनुष्यसंख्या १०० से भी कम है, तथा कुआरी स्त्रियोंकी संख्या ५,९२८ है, अतएव यदि १७ जातियां ऐसी हैं जिनकी मनुष्यसंख्या बराबर इनके साथ २० से ४५ तककी आयुके कुआरोंका घट रही है । गत वर्ष मैंने अपनी जाँगडा पोरवाड़ विवाह कर दिया जाय तो भी ५९,९१२ मेंसे जातिकी एक उपजातिकी मनुष्यगणना कराई थी केवल ५,९२८ कुआरे विवाह कर सकेंगे, और तो जान पड़ा कि उसमें केवल २७७ पुरुष तथा ५३,९८४ पुरुष फिर भी कुआरे रह जायेंगे जो २९२ स्त्रियां थीं । महाशयो, क्या यह बतानेकी संतान उत्पन्न करनेके योग्य होते हुए भी अविवाआवश्यकता है कि हमारी कौममें इस प्रकारकी हित रहनेके कारण ऐसा नहीं कर सकेंगे । ऐसी अल्पसंख्यक अनेक जातियोंका होना यह भी इसका अवस्थामें हमें क्या करना चाहिए, इस पर विचार कारण है कि हमारे यहां कुऑरे कुँआरियोंकी करनेकी कितनी आवश्यकता है उसका, महाशयसंख्या इस प्रकार अधिक है, और यदि हमें इनकी गण, आप ही अनुमान करें । इस विचारके लिए संख्या घटानेकी इच्छा है-यदि हम अपनेमें हमें एक बात और भी जाननी चाहिए और वह जन्म-परिमाणको बढ़ाया चाहते हैं---यदि हम यह है कि हमारी कौममें विधवाओंकी संख्या बहुत अपनी संख्याके -हासको रोकना चाहते हैं तो ही अधिक है-अन्य कौमोंसे भी अधिक हैहमें इस अनावश्यक, कृत्रिम तथा हानिकारक तथा अन्य कौमोंमें वह संख्या घटती जा रही है जातिभेदको उठाकर परस्पर खानपान तथा पर- परन्तु हमारी कौममें बढ़ती जा रही है । सन् ११ स्पर विवाहका प्रचार करनेका उद्योग करना चाहिए। की मनुष्यगणनाके अनुसार हमारी कौममें ६,०४, प्रिय बन्धुओ, हमको यह उद्योग अवश्य करना ६२९ स्त्रियोंमेंसे १,५३,२९७ अर्थात् प्रतिसेकड़ा होगा। हमारी कौममें जो जातिभेद है वह परं- २५.३ स्त्रियां विधवा हैं-दूसरे शब्दोंमें चार परागत व्यवसाय-भेदके ऊपर हिंदुओंके जातिभेद- स्त्रियोंमें तीन स्त्रियां सधवा और एक स्त्री विधवा के समान अवलांबत नहीं है, न हमारे यहां जाति- है। बौद्धोंमें सन् ९१ में ११.६, सन् ०१ में योंमें ऊंच नीचका कोई अनुक्रम है । अतएव ११, तथा सन् ११ में १०.५ प्रति सैकड़ा स्त्रियां भारतमें बढ़ती हुई व्यवसाय-चुननेकी स्वतंत्रतासे विधवा थीं; ईसाइयोंमें सन् ९१ में १२.६, सन् जातिभेद दूर होनेका जो स्वाभाविक क्रम चल रहा ०१ में १२.६ तथा सन् ११ में ११.८ प्रति है उसके ऊपर हम अपनी जातियोंको एक कर- सैकड़ा स्त्रियां विधवा थीं; पारसियोंमें सन् ९१ में नेका कार्य नहीं छोड़ सकते-हमें इसके लिए मानवी १३.८, सन् ०१ में १४.२ तथा सन् ११ में उद्योग करना होगा। महाशयो, अब हमें तीसरी १३.५ प्रति सैकड़ा स्त्रियां विधवा थीं; मुसलमानोंमें सम्मति पर विचार करना चाहिए। मान लीजिए सन् ९१ में १५, सन् ०१ में १५.१ तथा सन् कि हमने हमारी कौममेंसे जातिभेदको उठा दिया ११ में १४.६ प्रति सैकड़ा स्त्रियां विधवा थीं; तथा परस्पर-विवाहका प्रचार कर दिया । निःस- सिक्खोंमें सन् ९१ में १५, सन् ०१ में १३.८ न्देह इसका परिणाम यह होगा कि हमारी जातिमें तथा सन् ११ में १५ प्रति सैकड़ा स्त्रियां विधवा संतान-उत्पन्न करने योग्य जो पुरुष कुआरे हैं थीं; हिन्दुओंमें सन् ९१ में. १७, सन् ०१ में उनमेंसे अधिकांश विवाह कर सकेंगे-केवल १९३, तथा सन् ११ में १८.७ प्रति सैकल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522829
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy