SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CARBOARATHAADITIOLATALABULL जनहितैषी कृपणु एकु परसिद्ध, कृपणु कहै रे मीत, नयरि निवसंतु निलक्खणु । मज्झु घरि नारि सतावै। कही करम संजोग जात चालि धणु खरचि, तासु घरि, नारि विचक्खण ॥ कहै जो मोहि न भावै ॥ देखि दुहूकी जोड़, तिहि कारण दुब्बलौ, सयलु जग हिउ तमासै। रयण दिन भूख न लागै। याहि पुरिषकै याहि, मीत मरणु आइयौ, दई किम दे इम भासै ॥ गुज्झु आँखौ तू आगै ॥ वह रह्यौ रीति चाहै भली, दाण पुज्ज गुण सील सति। ता कृपण कहै रे कृपण सुणि, यह दे न खाण खरचण किवै, ___ मीत न कर मनमाहि दुखु । दुवै करहिदीण कलह अति । पीहरि पठाइ दै पापिणी, ... गुरसौं गोठि न करै, ज्यों को दिण तूं होइ सुखु ॥२१॥ देव देहुरौ न देखे । स्थानाभावसे अब हम और पद्य उद्धृत नहीं मांगिण भूलि न देइ, कर सकते। आखिर सेठजी घर आये और एक गालि सुणि रहै अलेखै ॥ झूठी चिट्ठी घरवालीके सामने पढ़कर बोले कि सगी भतीजी भुवा बहिणि, तुम्हारे बड़े भाईके पुत्र उत्पन्न हुआ है, इसलिए भाणिजी न ज्यावै॥ उन्होंने तुम्हें बुलानेके लिए यह चिठी देकर आदमी रहै रूसणी माड़ि, आप न्यौतौ जब आवै॥ भेजा है। तुम्हें पीहर चली जाना चाहिए । पाहुणौ सगौ आयौ सुणै, बेचारीको जाना पड़ा । इसके बाद यात्रियों का रहइ छिपिउ मुहु राखि करि। संघ चला गया। जब कुछ समयके बाद वह जिव जाय तवहि पाण नीसरइ, सकुशल लौट आया और उसमें सेठने देखा कि इम धन संच्यौ कृपण नर ॥ कई लोग मालामाल होकर आगये हैं तत उमे एक दिन कृपणका स्त्रान कहा कि गिरनार- बडा दुःख हआ कि मैं धयों न गया। मैं जाता जीकी यात्राके लिए बहुतसे लोग जा रहे हैं, तो खूब किफायतशारीसे रहता और इनसे भी यदि आप भी मुझे लेकर यात्रा करा लावें, तो अधिक धन कमा लाता । इस दुःखसे वह रात अपना धन पाना सफल हो जाय । इस पर सेठ दिन दुःखी रहने लगा और धीरे धीरे जी बड़े खफा हुए । दोनोंमें बहुत देर तक विवाद होता रहा। सेठान ने धनकी सफलता दान मरणशय्यापर पड़ गया । लोगोंने बहुत भोग आदिसे बतलाई और सेठने उसका विरोध समझाया कि अब तू कुछ दानधर्म कर ले, पर किया । अन्तमें सेठजी तंग आकर घरसे चल उसने किसीकी न सुनी । वह बोला, मैं सारे दिये । मार्गमें उनका एक पराना मित्र धनको साथ ले जाऊँगा । उसने लक्ष्मीसे मिला, वह भी कंजूस था । उसने पूछा, आज प्रार्थना कि मैंने तुम्हारी जीवनभर एकनिष्ठतासे तुम उन्मना और दुर्बल क्यों हो रहे हो ? सेठजी सेवा की है, अब तुम मेरे साथ चलो । लक्ष्मीने उत्तर देते हैं: कहा, कि मेरे साथ ले चलनेके जो कई दानादि १ गोष्टी बातचीत। १ यात्रा । २ गुह्य-गुप्त वात । ३ कह दिया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522829
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy