________________
५५६
mmmmmmmm
जैनहितैषी
अनइ ज त्रिभुवनसामि
सिजवाला धर धडहडइ वसई हियडइ जगनाहो।
वाहिणि बहुवेगि। ताण प्रमाणिइ सातक्षेत्र
धरणि धडक्का रजु उडए इम कीधउ रासो।
नवि सूझइ मागो। श्रीसंघु दुरियह अपहरउ
हय हींसह आरसइ करह सामी जिणपासो॥११७ ॥
वोग वहइ बहल्ल। संवत तेर सत्तावीसए
सादकिया थाहरइ
अवरु नवि देई बुल्ल ॥२॥ माह मसवाडइ।
निसि दीवी झलहलहि गुरुवारि आवीय दसाम
जेम ऊगिउ तारायणु। पहिलइ पखवाडइ।
पावल पारु न पामियए तहि पूरू हुउ रासु
वेगि वहई सुखासणु। सिवसुखनिहाणूं।
आगेवाणिहि संचरए । जिण चउवीसइ भवियणइ
संघपति साहु देसलु। करिसिइ कल्याणूं ॥१९८॥
बुद्धिवंतु बहु निवंतु २संघपतिसमरा-रास। अणहिल्लपुर पट्टनके
परिकमिहि सुनिश्चलु ॥३॥ आसवाल शाह समरा संघपतिने सं०१३७१
इन पद्योंकी रचना तो सोलहवीं और सत्र में शत्रुजय तीर्थका उद्धार अगणित धन व्यय , करके किया था । इस उद्धारको लक्ष्य करके
हवीं शताब्दीके राजपूतानाके चारणीय रासोंसे
• भी विशेष सरल और सहजमें समझमें आजानेनागेन्द्र गच्छके आचार्य पासड सूरिके शिष्य अंबदेवने यह रासा बनाया है। इसमें गुजराती प्रयो
वाली है। गोंके स्थानमें राजस्थानी भाषाके शब्द अधिक . २ थूलिभद्र फागु । इस नामकी एक दिखाई देते हैं इससे, इसके कर्ताका वासस्थान
सी पुस्तक खरतर गच्छके आचार्य जिनपद्मसंभवतः राजपूतानाका कोई प्रदेश होना ।
सूरिने विक्रमकी चौदहवीं शताब्दीके अन्तमें,
' चैत्र महीनेमें फाग खेलनेके लिए बनाई है। चाहिए । राजस्थानी भाषाओंका जितना सादृश्य गुजरातीके साथ है उससे कई गुना अधिक
उसका प्रारंभ इस प्रकार है:
पणमिय पास जिणंदण्य, हिन्दीसे है और यह आज भी प्रत्यक्ष है।
अनु सरसई समरोवि। पट्टनसे संघ निकाल कर समरा शाहने जब थूलभद्रमुणिवइ भणिसु, शत्रुजयकी तरफ प्रयाण किया उस समयका फागु बंध गुणकवि ॥१॥ कवि वर्णन करता है:
अह सोहग सुंदर रूबरंतु वाजिय संख असंख नादि
गुणमणिभंडारो। कंचण
जिम झलकंत कंति संजम काहल दुडुदुडिया। घोड़े चड़इ सल्लारसार
सिरि हारो ॥ थूलिभद्र राउत सींगड़िया।
मुणिराउ जाम महियली तउ देवालउ जोत्रि योग
बोहंतउ । नयरराय पाडलिय घाघरि रवु झमकह।
मांहि पहूतउ विहरंतउ ॥ सम विसम नवि गणइ
'कच्छलिरासा ' आदि और भी कई कृतिकोई नवि वारिउ थक्का॥१॥ याँ इस शताब्दीकी मिलती हैं।
१सं० १३२७ मसबाड़ (मार्गसिर ?), पहले ज्यक्षकी दशमी, गुरुवार ।
१ सरस्वति । २ स्थूलभद्र मुनिपाते। ३ नगरराज-श्रेष्ठ नगर । ५ पाटलीपुत्रमें।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org