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हिन्दी-जैनसाहित्यका इतिहास।
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म्बरी साहित्य प्रायः बिल्कुल नहीं है, इस कारण करनेसे निबन्ध बहुत बढ़ गया है और इस इन प्रान्तोंके दिगम्बरियोंका काम हिन्दीग्रन्थोंसे कारण मुझे भय है कि इसके पढ़नेके लिए समय ही चलता रहा है। अतएव यहाँके भण्डारोंमें मिलेगा या नहीं; तो भी यह निश्चय है कि भी हिन्दकि दिगम्बर ग्रन्थ मिलेंगे। दो तीन वर्ष मेरा परिश्रम व्यर्थ न जायगा । हिन्दीके सेवक पहले हमने बार्सी (शोलापुर ) से दो ऐसे हिन्दी इससे कुछ न कुछ लाभ अवश्य उठायँगे । ग्रन्थ मँगाकर देखे थे, जो इस ओर कहीं भी ५ उपलब्ध जैनसाहित्यके नहीं मिलते हैं।
विषयमें विचार । ४ अपूर्ण खोज।
१ उपलब्ध जैनसाहित्य दो भागोंमें विभक्त मेरा यह निबन्ध पूरी खोजसे तैयार नहीं हो सकता है-श्वेताम्बर और दिगम्बर । हो सका है । जयपुरमें बाबा दुलीचन्दजीका श्वेताम्बर सम्प्रदायके साहित्यमें कथाग्रन्थ ही हस्तलिखित भाषाग्रन्थोंका एक अच्छा पुस्तका- अधिक हैं, तात्त्विक या सैद्धान्तिक ग्रन्थ प्रायःलय है, उसकी सूचीसे, बाबू ज्ञानचन्द्रजी नहींके बराबर हैं, पर दिगम्बर साहित्यमें लाहौरवालोंकी ग्रन्थनाममालासे, छपे हुए जितने कथाग्रन्थ या चरित्रग्रन्थ हैं लगभग ग्रन्थोंसे, पूज्य पं० पन्नालालजी द्वारा बनीहुई उतने ही तात्त्विक और सैद्धान्तिक ग्रन्थ हैं । गोजयपुरके कुछ भण्डारोंकी सूचीसे और बम्बईके म्मटसार, राजवार्तिक, सर्वार्थसिद्धि, आत्मख्याति, तेरहपंथी मन्दिरके पुस्तकालयके ग्रन्थोंसे मैंने भगवती आराधना, प्रवचनसार, समयसार, पंचायह निबन्ध तैयार किया है। जिन लेखकोंका स्तिकाय जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थोंकी वचनिकायें समयादि नहीं मिला है, उनको प्रायः छोड़ दिगम्बरसाहित्यमें मौजूद हैं। किसी किसी ग्रन्थके दिया है । यदि लेखकके सामने सबके सब ग्रन्थ तो दो दो चार चार गद्यपद्यानुवाद मिलते हैं। होते, तो वह इस निबन्धको और भी अच्छी देवागम. परीक्षामख, न्यायदीपिका, आप्तमीमांसा तरहसे लिख सकता।
आदि न्यायके ग्रन्थों तकके हिन्दी अनुवाद कर लेखकको विश्वास है कि खोज करनेसे डाले गये हैं। ऐसा कहना चाहिए कि दिगम्बरिहिन्दीके प्राचीन जैनग्रन्थ बहुत मिलेगी और योंके संस्कृत और प्राकृत साहित्यमें जिन जिन उनसे यह निश्चय करने में सहायता मिलेंगे कि विषयोंके ग्रन्थ मिलते हैं, प्रायः उन सभी विषहिन्दीका लिखना कबसे शुरू हुआ।
यों पर हिन्दीमें कुछ न कुछ लिखा जा चुका है। 'जैन लेखकों और कवियों द्वारा हिन्दी साहि- हिन्दकि लिए यह बड़े गौरवकी बात है। यदि ल्यकी सेवा' यह विषय ऐसा है कि इसमें सन् कोई चाहे तो वह केवल हिन्दी भाषाके द्वारा संवत् न दिया जाता तो भी काम चल सकता दिगम्बर जैनधर्मका ज्ञाता हो सकता है । इसका था; परन्तु जब निबन्ध लिखना शुरू किया फल भी स्पष्ट हो रहा है । श्वेताम्बर सम्प्रदायमें जो गया, तब यह सोचा गया कि इसके साथ साथ लोग संस्कृत और प्राकृत नहीं जानते हैं, उनमें यदि लेखकोंका इतिहास भी दे दिया जाय, तो धार्मिक ज्ञानका प्रायः अभाव देखा जाता है-प्रायः एक और काम हो जायगा और समय भी अधिक लोग मुनिमहाराजोंके ही भरोसे रहते हैं; पर न लगेगा। अतः इसमें कवियोंका थोड़ा थोड़ा दिगम्बर सम्प्रदायमें यह बात नहीं है। यहाँ जैनपरिचय भी शामिल कर दिया गया है । ऐसा धर्मकी जानकारी रखनेवाले जगह जगह मौजूद
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