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श्रीवर्द्धमानाय नमः।
अंक
भाग
१२
११-१२
जनहितैषी
नवंबर, दिसंबर १९१६.
जैनसमाज। तीर्थक्षेत्रोंके झगड़े, स्त्रियोंकी अज्ञानमय-दुःखमय दशा, शास्त्रोंकी रक्षा और प्रचारके काममें लापरवाही और अगुओंकी 'भेड़ियाधसान' बुद्धिके अन्धेर: ये सब बातें देखकर शासनदेवी धनवानों, पण्डितों और बाबुओंको सम्मिलित शक्तिसे उद्योग करनेके लिए समझा रही है।
RALA सं०--नाथूरामप्रेमी।
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