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________________ BIHARIWARI जैनहितैषी ६ आर्यसमाजके प्लेटफार्मपर जैनधर्मका हम लोग हैं जिनके प्लेटफार्मोपर-दूसरे धर्म___ व्याख्यान । वालोंके तो क्या अपने ही धर्मके माननवालोंकेगुरुकुल कांगड़ीके गतवार्षिकोत्सवके समय यदि वे अपनेसे जरा भी विरुद्ध विचार रखते हैंआर्यसमाजके प्लेटफार्म पर स्याद्वादपाठशाला काशी- व्याख्यान नहीं हो सकते हैं और एक वे हैं जो के धर्माध्यापक पण्डित उमरावसिंहजीका एक अपनी सभाओंमें दूसरे विद्वानोंको आदरपूर्वक व्याख्यान हुआ था जिसमें पण्डितजीने जैन- बुलाते हैं और उनके विचारोंसे लाभ उठानेका धर्मके अनुसार ईश्वरका स्वरूप निरूपण किया प्रयत्न करते हैं। था। जैनमित्रके सम्पादक महाशयने इस विष- ७ एक जैनविधवाके कन्याजन्म । यमें पण्डितजीकी बहुत प्रशंसा की है और उनके बारामती ( पूना ) के संभवतः हूमड़जातीय साहसको बहुत बड़ा बतलाया है । लिखा है शाह माणिकचन्द बालचन्दजी जैनकी भावजकेकि “ इतना बड़ा साहसका काम कि आर्य- जो दशवर्षसे विधवा है-हाल ही एक लड़की समाजियोंके जल्सेमें उनके विरुद्ध सिद्धान्तका उत्पन्न हुई है । जिस समय उक्त विधवा गर्भविवेचन सबको सुनाया, पर अति दुःखकी बात वती थी, उस समय किसी सज्जनने इसकी है कि किसी भी जैनपत्रने उनके इस कार्यकी सूचना कोर्टको दे दी थी, इस लिए कोर्टने सराहना नहीं की और न उनके दिलको बढ़ाया।” उससे जामिन ले ली थी कि वह किसी प्रकार पण्डितजीका व्याख्यान यदि अच्छा हुआ है, गर्भपात न कर डाले । इससे बेचारी लड़कीकी यदि उसमें ऐसी बातें कही गई हैं जो कुछ विशे- जान बच गई, वह सुखपूर्वक प्रसूत हुई । सहषता रखती हैं तो अवश्य ही उनकी प्रशंसा हो योगी जैनबोधक इस विषयमें बड़े ही मजेकी नी चाहिए; पर केवल इसी लिए कि उन्होंने बात लिखता है कि बारामतीके पंच इस बातकी आर्यसमाजके प्लेट फार्म पर व्याख्यान दिया, चिन्तामें हैं कि यदि कोई आदमी इस बातको प्रशंसाका कार्य हो गया, यह हम नहीं मान कहे कि उक्त विधवाने अपराध किया है तो हम सकते। हमारी समझमें यह बात नहीं आई उस विधवाको जातिसे खारिज करें या उसे कि इसमें पण्डितजीका साहस क्या हुआ। आर्य- दण्ड देवें; परन्तु भयके मारे कोई तैयार ही नहीं समाज प्रतिवर्ष अपने जल्सोंपर जुदा ज़दा होता है और बेचारे पंच यह सब जानते हैं कि धर्मोके विद्वानोंको निमंत्रण देकर बुलाता है जो दश वर्षसे विधवा है, उसके बिना पराये और अपने प्लेट फार्म पर शौकसे उनके व्या- पतिके सहवास सम्बन्धके सन्तान नहीं हो सकती ख्यान कराता है । वह समझता है कि इससे है और सन्तान प्रत्यक्ष है; पर क्या करें, बिना हमारे ज्ञानकी वृद्धि होगी। उसे यह डर नहीं किसी कहनेवालेके तैयार हुए कहीं न्याय हो रहता है कि विधर्मियोंके व्याख्यान हमें अपने सकता है ? बलिहारी है ! इन्हीं पंचोंकी बुद्धि धर्ममें शिथिल कर देंगे। पण्डितजी भी इसी और न्यायपटुताके भरोसे हम कहा करते हैं कि तरह जैनधर्मकी कुछ बातें सुनानेके लिए निमं- हमारी पंचायत संस्था' बहुत अच्छी है। उसकी त्रित किये गये होंगे और उन्होंने अपनी बद्रिके न्यायशीलताके कारण हमारे यहाँ पाप नहीं अनुसार अपने विषयका प्रतिपादन किया होगा। होते, अन्याय नहीं होते और हमारी रगोंमें यह कोई वादविवादका या शास्त्रार्थ आदिका काम विशुद्ध रक्तका प्रवाह हो रहा है । सच नहीं था, जिसमें उनके साहसकी प्रशंसा की तो यह है कि हमारी और और संस्थाके जाय । हमारी समझमें तो इस समाचारको समान यह पंचायत-संस्था भी बिल्कुल सड़ गई पढकर हमें आर्यसमाजके साहसकी और उसकी है। जब तक हम इसका नये सिरेसे फिर संस्कार उदार नीतिकी प्रशंसा करनी चाहिए । एक तो नहीं करेंगे तब तक इससे कोई लाभ नहीं हो सकता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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