SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९४ JADHAARAABMARA जनहितैषी रही है।" के लिए २२ से २८ तककी आयु, विवाहके हना कर रहे हैं। स्त्रियाँ ईर्षासे गुड़ियासी लिए सर्वोत्तम जान पड़ती है। अति सुन्दरी चन्द्रमुखीको देख कर कहती संसारकी सारी सुशिक्षित और सभ्य जा- हैं-" परमेश्वर त धन्य है । जिस पर परमेतियोमें ऐसी ही अवस्थामें विवाह हुआ कर- श्वर प्रसन्न होता है, उसे इसी तरह हर तरह सुख सम्पत्ति देता है ! देखो न कहाँ ___ डाक्टर एफ. हालिक कहते हैं:-"यरोप चन्द्रमुखी आरै कहाँ गोद भराई ! अभी और अमरीकामें आम तौर पर विवाह कर. तो अमीचन्दकी पतोहू लड़कीसी लगती हैं, नेका समय पुरुषके लिए २८ से ३१ वर्ष पर वाह रे भाग्य ! वाह रे ईश्वरकी देन कि तक और स्त्रीके लिए २३ से २८ वर्ष तक उनकी गुड़िसासी बहूको लड़का होनेवाला होता है। पर उन लोगोंकी संख्या, जो और है।" बाबू अमीचन्दके माता पिता दोनों देरमें विवाह करते हैं या वे स्वीपरुष जो जीव- जीवित हैं । वे आज फूले नहीं समाते । अभी नपर्यन्त विवाह करते ही नहीं, बढती जा पतोहूकी आयु १३ वर्षसे कम ही है और दिन पूरे हो गये ! एक उदाहरण। आज दो दिनसे घरमें दाइयोंकी भरमार बाबू अमीचन्द और बाबू घनश्यामदास है। सारे शहरकी बूढी खुशामदी स्त्रियाँ कालेजके सहपाठी मित्र हैं। बाबू अमीचन्दको घरमें खचाखच भरी हैं। सव माथे पर हाथ एक लड़का है और घनश्यामदासको एक रखकर उदास होकर बैठी हैं। बाबू अमीएक लड़की । दोनों मित्रोंने कालेजमें ही तै चन्द भी तार पाते ही डाकगाड़ीसे रवाना कर लिया है कि उनके बच्चोंका विवाह एक हो गये । दाइयोंसे काम न चलनेपर मिस. साथ होगा। बड़ी धूमधामसे १२ वर्षके साहबा बुलाई गई और उनके कहनेपर सिविल केदारनाथ १० वर्षकी चन्द्रमुखीके साथ सर्जन भी उपस्थित हुए। कई और डाक्टर ब्याहे गये । बाबू अमीचन्द इसी साल भी बैठे हुए राय मिला रहे हैं, पर चन्द्रमुM. A. की परीक्षा उत्तीर्ण होकर डिप्टी सीकी आह एक मिनटको नहीं रुकती । केकलेक्टरीके पद पर नियुक्त हुए हैं। केदार- दारनाथ बूढ़ी स्त्रियोंसे खुल्लमखुल्ला डाँटे जानेनाथका शुभ विवाह हुए कुल अढाई वर्ष पर और बेहया कहे जानेपर भी बहूके पास बीते थे । आज फिर घरमें मङ्गलोत्सव हो जानेसे नहीं मानता । वह अपना कमरा और रहा है। महफिलमें काशीकी नामी नामी बहूका कमरा एक किये है । लाख कोशिश रण्डियाँ आई हैं । सारे शहरमें धूम मच करने पर भी उसकी आँखोंसे आसुओंकी गई है। लोग बाबू अमीचन्दके भाग्यकी सरा- बड़ी बड़ी बूंदें टपक पड़ती हैं । वह घुटने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy