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________________ विषय-सूची। नियमावली। १. वार्षिक मूल्य उपहारसहित ३) तीन रुपया पेशगी है। वी.पी. तीन रुपया एक आनेका भेजा जाता है। २. उपहारके बिना भी तीन रुपया मूल्य है। १ भद्रबाहु-संहिता ( ग्रन्थपरीक्षा )- ३. ग्राहक वर्षके आरंभसे किये जाते हैं और वीचसे लेखक, श्रीयुत वाबू जुगलकिशोरजी अर्थात् ७ वें अंकसे । बीचसे ग्राहक होनेवालोंको मुख्तार। ... ... . ४२१ उपहार नहीं दिया जाता। आधे वर्षका मल्य २ पुस्तक-परिचय ... ४४२ ११) रु. है। ५. प्रत्येक अंकका मूल्य पाँच आने है। ३शारदागम ( कविता )-ले०, श्रायुत ५. सब तरहका पत्रव्यवहार इस पतसे करना चाहिए। पं० रामचरित उपाध्याय। ... 1. ४४५ जना मैनेजर-जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय. ४ राजनीतिके मैदान में आओ-ले०, श्रीयुत व्र० भगवानदीन । ... ४४६ हीराबाग, पो० गिरगांव-बंबई। ५ जैनधर्मके पालनेवाले वैश्य ही प्रार्थनाय । क्यों? १. जैनहितैषी किसी स्वार्थबुद्धिसे प्रेरित होकर निजी ६ प्रार्थना ( कविता )-ले०, श्रीयुत पं० लाभके लिए नहीं निकाला जाता है। इसमें जो समय गिरिधर शर्मा। ... १५४ और शक्तिका व्यय किया जाता है वह केवल अच्छे ७ जैनधर्म और जैनदर्शन ... ४५५ विचारों के प्रचारके लिए । अतः इसकी उन्नतिमे ८ काश्मीरका इतिहास-ले०, श्रीयुत हमारे प्रत्येक पाठकको सहायता देनी चाहिए। बाबू सुपार्शदास जैन बी. ए.। ... ४६४ २. जिन महाशयों को इसका कोई लेख अच्छा मालूम ९पतितोद्धार ( कविता)-ले०, श्रीयुत हो उन्हें चाहिए कि उस लेखको जितने मित्रोंको वे पढ़कर सुना सकें अवश्य सुना दिया करें। ब्र० विश्वंभरदास गार्गीय ... ४६८ ३. यदि कोई लेख अच्छा न मालूम हो अथवा विरुद्ध १० सूक्तमुक्तावली और सोमप्रभा मालम हो तो केवल उसीके कारण लेखक या चार्य-ले०, श्रीयत मुनि जिनविजयजी ४६९ सम्पादकसे द्वेष भाव न धारण करने के लिए सवि११ माताका पुत्रको जगाना ( कविता) नय निवेदन है। ___ ले, श्रीयुत पं० रामचस्ति उपाध्याय ४७७ ४. लेख भेजनेके लिए सभी सम्प्रदायके लेखकोंकों १२ सार्वजनिक धनकी जिम्मेवारी ४७९ आमंत्रण है। -सम्पादक। १३ बालविवाह-ले, श्रीयुत ठाकुर शिव दूसरे उपहारकी सूचना । नन्दनसिंह बी. ए. ... ४८६ दसरा उपहार अभीतक नहीं दिया गया, इसका १४ युवकोंके प्रति ( कविता ) ... ४९५ कारण यह है कि जिन लेखक महाशयने उसे लिख १५ सम्मानित (गल्प)-ले. श्रीयुत पं० देना कहा है वे अवकाशाभावके कारण अब तक ___ ज्वालादत्त शर्मा ... ... ४९६ लिख नहीं सके हैं। तकाजा किया जा रहा है। ज्यों १६ विविध प्रसङ्ग ... ... ५०४ ही वे लिख देंगे, त्यांही उसके छानेका प्रबन्ध कर १७ तीर्थों के झगड़े मिटानेकाआन्दोलन५०९ दिया जायगा । कागज खरीदा हुआ रक्खा है । एक १८ भारतमें जैनसमाजकी अवस्था ५१९ धर्मात्मा सजनने इस पुस्तक छपानेका पूरा खर्च देनेकी स्वीकारता दे दी है। माला न मालूम हो अथवा विरुद्ध चाय-ले०, श्रीयुत मुनि जिनकि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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