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CHAIMARITALIMILAIMARATHI
जैनहितैषी
साथ ही मूलाचारके आधार पर यह भी किया है उसको छेदोपस्थापना या छेदोप्रगट किया गया है कि ' छेदोपस्थापनाकी पस्थापन कहते हैं । समस्त सावद्यके त्यागमें पंचमहाव्रत संज्ञा भी है।' अस्तु । 'तत्त्वार्थ- छेदोपस्थापनाको हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन राजवार्तिक में भट्टाकलंकदेवने भी छेदोप- और परिग्रहसे विरतिरूप व्रत कहा है। स्थापनाका ऐसा ही स्वरूप प्रतिपादन किया यहाँपर यह बात समझमें आसकती है कि
यदि यह माना जाय कि आजसे ढाई हजार वर्ष "सावयं कर्म हिंसादिभेदेन- पहले सावद्य कर्ममें हिंसादिक भेदोंकी कल्पना विकल्पनिवृत्तिः छेदोपस्थापना।" नहीं थी तो साथ ही यह भी मानना पड़ेगा इसी ग्रंथमें अकलंकदेवने यह भी लिखा कि उस वक्त छेदोपस्थापना चारित्रका भी है कि सामायिककी अपेक्षा व्रत एक है अस्तित्व नहीं था। क्योंकि छेदोपस्थापनाका और छेदोपस्थापनाकी अपेक्षा उसके पाँच त्यागभाव हिंसादिक भेदोंकी अपेक्षा रखता भेद हैं । यथाः
है। इसी प्रकार यदि यह कहा जाय कि “सर्वसावधनिवृत्तिलक्षणसामायिका महावीर स्वामीसे पहले हिंसादिक पापोंका पेक्षया एकं व्रतं, भेदपरतंत्रच्छेदोपस्था- अस्तित्व ही नहीं था तो उसके साथ ही नापेक्षया पंचविधं व्रतम् ।”
यह भी बतलाना होगा कि वह कौनसा सावद्य इसके सिवाय श्रीवीरनन्दि आचार्यने, कर्म था जिसका उस वक्त सामायिक द्वारा ' आचारसार ' ग्रंथके पाँचवें अधिकारमें, छे. त्याग कराया जाता था ? अन्यथा, सामायिक दोपस्थापनाका जो निम्नस्वरूप वर्णन किया है चारित्रके अस्तित्वसे भी इनकार करना होगा उससे इस विषयका और भी स्पष्टीकरण और इस तरह पंच प्रकारके चारित्रका हो जाता है। यथाः
ही लोप करना पड़ेगा । आश्चर्यकी बात है "व्रतसमितिगुप्तिगैः
कि तत्त्वबुभुत्सुजी महावीर स्वामीसे पहले, पंच पंच त्रिभिर्मतैः।
ऋषभ आदिके समयमें, पंचप्रकारके चारित्रछेदैर्भदैरुपेत्यार्थ स्थापनं स्वस्थितिक्रिया ॥६॥
का तो अस्तित्व मानते हैं, परन्तु हिंसादिक छेदोपस्थानं प्रोक्तं
पापों और उनके विरोधी पंचमहाव्रतादिसर्वसावद्यवर्जने।
कोंका अस्तित्व स्वीकार नहीं करते ! व्रतं हिंसाऽनृतस्तेया।
इससे कहना पड़ता है. कि उनका यह सब ब्रह्म संगेष्वसंगमः॥७॥
कथन बिलकुल निःसार और भ्रममूलक है। अर्थात्—पाँच व्रत, पाँच समिति और इसमें कुछ भी तथ्य नहीं है । जरूरत होनेतीन गुप्ति नामके छेदों-भेदोंके द्वारा अर्थको पर ऐसे बहुतसे प्रमाण उपस्थित किये जा प्राप्त होकर जो अपने आत्मामें स्थिर होनेरूप सकते हैं जिनसे यह सिद्ध होता है
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