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________________ व तीर्थोके झगड़े कैसे मिटें ? ( लेखक-श्रीयुत वाडीलाल मोतीलाल शाह । ) दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंमें भूख और अज्ञानसे मर रहे हैं और उनके तीर्थकरोंकी मूर्ति पूजी जाती है और दोनों ही लिए किसीकी आँखमें दो बूँद आँसू भी नहीं इसे पुण्यकार्य समझते हैं । परन्तु दोनोंकी आते ! पर इन मुकदमों में अब तक कोई पक्ष न पूजाविधिमें थोड़ीसी भिन्नता है। एक सम्प्रदायवाले जीता है और न हारा है ! हजारों पर पानी फेर भगवानकी मूर्तिको सब प्रकारके परिग्रहसम्बन्धसे कर एक पक्ष एक कोर्टसे जीतकर सर्टिफिकेट रहित रखते हैं और दूसरी सम्प्रदायवाले उसे लेता है, पर दूसरीमें हार जाता है और तब ऑगी चक्षु आदि लगाकर पूजते हैं । इस साधार- यहाँ वहाँसे रुपयोंका बल एकहा करके तीसरी ण भिन्नताके कारण दोनों ही सम्प्रदायवाले एक कोर्ट में जानेके लिए कमर कसता है । जो लोग दूसरेको झूठा और उन्मार्गी सिद्ध किया करते इस कामके अगुए-लड़नेके लिए उत्तेजित करनेहैं। इस कार्यके लिए अभीतक समाचारपत्र वाले हैं, वे प्रायः धर्मान्ध हैं और 'भुसमें चिनगी और व्याख्यान आदि साधन काममें लाये जाते डाल जमालो दूर खड़ी' वाली कहावतको चरिथे, परन्तु जब इनसे सन्तोष न हुआ तब इस तार्थ करते हैं । भोले भक्तोंके पैसोंकी होली जलकार्यमें दोनोंने रुपयोंकी सहायता लेना शुरू कर ती है और ये दृर खड़े रहकर तापते हैं । अभी दी है और इस तरह अब ये रुपयोंके द्वारा हाल ही मैंने सुना है कि बम्बईमें दिगम्बर जैनाअपने अपने धर्मको विजयशाली बनाना चाहते हैं। की सभा हुई और उसमें बातकी बातमें सम्मेद... सम्मेदशिखर, अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ, मक्सी, शिखरके मुकदमेंके लिए ६०-७० हजारका तारंगा आदि पवित्र-स्थानों में आजकल यही हो फण्ड हो गया ! इस समय कोई आठ महीनेसे रहा है। प्रत्येक पक्षवाला यही कहता है कि दिगम्बरियोंका लगभग दश हजार रुपये मासिइन तीर्थों पर केवल हमारा ही हक है और हमारी कके हिसाबसे सम्मेदशिखरके मुकद्दमेंमें खर्च ही पद्धतिसे यहाँ उपासना-पूजा होनी चाहिए। हो रहा है ! उधर श्वेताम्बर भाईयोंकी 'आनइसके लिए कई मुकद्दमें दायर हैं जो वर्षों से चल रहे न्दजी कल्याणजी' की कोठी जब तक बर करार हैं और उनके लिए लाखों रुपया भोले भाईयोंसे इस हैं तब तक कोटोंके और वकील बैरिस्टरोंके तरह वसूल किया जाता है; मानों इन मुकद्दमों- लिए तो चिन्ता करने या चन्दा करनेका कोई से तीर्थंकरोंके धर्मका प्रचार या प्रभावना ही हो कारण ही नहीं है । उनका तो सब तरहसे आनन्द रही हो। अब तक दोनों पक्षवालोंके इस काममें और कल्याण है । परन्तु इन प्रयत्नोंसे जैनधर्मका कई लाख रुपये लग चुके हैं और ये उस समय या श्वेताम्बर दिगम्बर सम्प्रदायका क्या कल्याण खर्च हुए हैं जब स्वयं जैनी ही दुःख, दरिद्रता, होगा, यह कोई नहीं बतलाता । क्या अदाल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522827
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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