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________________ AARAMAmumILAIMELLAMABARD जैनहितैषी। Martinimummy arsanssxsisiSakdishSINSERSERSERSSERSERS स्वर्गवास विक्रम संवत् ५८५ में माना जाता NAAMKARAN MANTRA है-अर्थात् विक्रमसंवत् ५८५ से भी पहले पुस्तक-परिचय । यापनीय संघके अस्तित्वका पता लगता है। M ORMONCONDOMPOARNESMOONDOMCOACOMRSACSESAL __यद्यपि डा० जैकोबी आदि हरिभद्रसूरिको उपमितिभवप्रपंचाके कर्ता सिद्धर्षिका १ महावीर-जीवन-विस्तार । समसामयिक विक्रमकी दशवीं शताब्दिका मान- जैनसमाजमें वर्तमान समयकी आवश्यकताते हैं; परन्त उनकी यक्तियाँ भ्रममलक हैं। विक्र- ओंको समझनेवाले प्रतिभाशाली लेखकोंका प्रायः अभाव है और यही कारण है जो इतनी जागृति __ और आन्दोलन होनेपर भी अभीतक महावीर जान पड़ता है। ऐसी दशामें समझमें नहीं ' भगवानका जैनधर्मके प्रधान प्रवर्तक महावीर तीर्थ.. आता कि हम देवसेनसूरिके बतलाये हुए करका-काई अच्छा जीवनचरित नहीं है । कमसे समयको गलत समझें या हरिभद्रसूरिके समय- कम अजैनोंके हाथमें देने योग्य जीवनचरितका निर्णयको। तो बिलकुल अभाव है। आज ऐसी कोई श्रेष्ठ ___ यापनीयसंघमें कई गण गच्छादि भी भाषा नहीं है जिसमें बुद्ध-भगवान्का जीवनचरित थे । द्वितीय प्रभूतवर्ष महाराजके एक दान- न मिलता हो; भारतवर्षमें बौद्धधर्मका अभाव पत्रमें यापनीय सम्प्रदायके नन्दि संघ और होने पर भी यहाँकी मायः सभी भाषाओंमें बुद्ध'नागवृक्षमूल गणका उल्लेख मिलता है। यह जीवनी लिखी जा चुकी है; परन्तु जैनधर्मके माननेदानपत्र शक संवत् ७३५ का लिखा हुआ है। वालोंकी संख्या १३ लाख होने पर भी उनके उपसंहार। उपास्य देवके चरितके विषयमें लोग बहुत ही शाकटायन जैन थे । उनका दूसरा नाम थोड़ा जानते हैं । यहाँकी भाषाओंका सहित्य महापाल्यकीर्ति भी था। वे यापनीय संघके वीरके पवित्र जीवनसे सर्वथा वंचित है। इस कमीकाप्रसिद्ध आचार्य थे । यापनीय संघ दिगम्बर आवश्यकताका-अनुभव हम बहुत समयसे कर रहे श्वेताम्बरके समान एक तीसरा सम्प्रदाय था थे कि आज एकाएक इस ग्रन्थके दर्शन हुए। जो अब लुप्त हो गया है। शाकटायनके " इसे पढ़कर बहुत सन्तोष हुआ और आशा हुई कि अब वह समय बहुत दूर नहीं है जब महावीर शब्दानुशासन (मूलसूत्र ), अमोघवृत्ति भगवानका एक सर्वांगसुन्दर जीवनचरित लिखा टीका और केवलभुक्तिस्त्रीमुक्तिप्रकरण ये जायगा। इसे गुजराती भाषाके प्रसिद्ध आध्या. तीन ग्रन्थ उपलब्ध हैं । एक कोई साहित्य- त्मिक लेखक श्रीयुत भीमजी हरजीवन परीख का ग्रन्थ भी उनका है जिसका उल्लेख ( सुशील ) ने लिखा है और मेसर्स मेघजी हीरजी राजशेखरकी काव्यमीमांसामें किया है। वे कम्पनीने प्रकाशित किया है । इसमें भगवानके राष्ट्रकूटवंशीय महाराज अमोघवर्षके समयमें जीवनकी मुख्य मुख्य घटनाओंको लेकर विचार किया शक संवत् ७३६-७८९ वि०सं० ८७१ से गया है और उनसे भगवानके लोकोत्तर जीवनकी ९२४ ) के लगभग वर्तमान थे। गहरी बातों पर प्रकाश डाला गया है । लेखक अच्छे विचारक हैं, स्वतंत्र मत देनेवाले हैं, जैन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522827
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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