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________________ AHMIRMILITARITAL शाकटायनाचार्य। MRITINRITE शत्रुओंको जला दिया । इस उदाहरणमें ७८९ के मध्य किसी समय रची गई है ग्रन्थकर्ताने प्रथम अमोघवर्षकी अपने और यही पाल्यकीर्ति या शाकटायनका शत्रुओंपर विजय पानेकी जिस घटनाका समय है। उल्लेख किया है, उसीका जिक्र शक संवत्- इतिहासके पाठकोंसे यह छुपा नहीं है ८३२ के एक राष्ट्रकूट-शिलालेखमें एपि- कि राष्ट्रकटवंशीय महाराज अमोघवर्ष (प्रथम) ग्राफिआ इंडिका वोल्यूम १ पृष्ठ ५४ ' भूपा- जैनसाहित्यके बड़े भारी आश्रयदाता हो लान् कण्टकामान् वेष्टयित्वा ददाह' इन गये हैं। दिगम्बर जैनसम्प्रदायके आचार्य शब्दोंमें किया है । इसका भी अर्थ लगभग जिनसेनको वे अपना गुरु मानते थे । अतः वही है-'प्रथम अमोघवर्षने उन राजाओंको यदि उस समयके प्रसिद्ध वैयाकरण शाकघेरा और जला दिया जो उससे एकाएक टायनने उनके सन्तोषार्थ अपनी वत्तिका नाम विरुद्ध हो गये थे ।' उक्त शिलालेख अमो- अमोघवृत्ति रक्खा हो, तो कुछ आश्चर्य नहीं प्रवर्ष प्रथमके बहुत पीछे लिखा गया था, है। और फिर · अदहदमोघवर्षोऽरातीन्' इस इस लिए इसमें परोक्षार्थवाली — ददाह' उदाहरणसे तो-जो अमोघवृत्तिमें दिया गया क्रिया दी है। उसके लेखकके लिए उक्त घट- है-अमोघवर्ष और अमोघवृत्तिके कर्ता की नाका स्वयं देखना अशक्य था; परन्तु अमो- समकालीनता और भी अधिक स्पष्ट हो घवृत्तिके कर्त्ताके लिए वह शक्य था, इसलिए जाती है । उसने 'अदहत्' यह लङ्प्रत्ययकी क्रिया दी ऊपर मलयगिरिमरिकी नन्दिसूत्रटीकाका है। अर्थात् यह उसके सामनेकी घटना जो कछ अंश उद्भत किया है, उससे होगी। बगमुराके दानपत्रमें जो शक संवत्- मालूम होता है कि शाकटायन यापनीय-यति. ७८९ का लिखा हुआ है, इस घटनाका ग्रामाग्रणीः' अर्थात् यापनीय संघके आचार्योंके उल्लेख है। उसमें जो कुछ लिखा है उसका अगए थे । यापनीय संघका उल्लेख इन्द्र. अभिप्राय यह है कि गुजरातके माण्डलिकराजा एकाएक बिगड़ खड़े हुए थे और गोपिच्छिकः श्वेतवासो उन्होंने अमोघवर्षके विरुद्ध शस्त्र ग्रहण किया द्राविडो यापनीयकः। था। अमोघवर्षने उस समय उनपर चढाई करके नि:पिच्छिकश्च पंचैते उन्हें तहस नहस कर डाला । इस युद्धमें ध्रुव जैनाभासाः प्रकीर्तिताः॥ घायल होकर मारा गया । अमोघवर्ष शक अर्थात् गोपिच्छिक ( काष्ठासंघ ), श्वेतासंवत् ७३६ में सिंहासनपर बैठे थे और म्बर, द्राविड़, यापनीय और निःपिच्छिक यह दानपत्र शक ७८९ का है । अतः (माथुर संघ ) ये पाँच जैनाभास हैं। दिगसिद्ध हुआ कि अमोघवृत्ति शक ७३६-- म्बरसम्प्रदायकी दृष्टि से ये पाँचों संघ जैन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522827
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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