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________________ कोई धर्मात्मा माई इसी प्रकारका कोई मार्ग सूचित करनेके लिए और उसके सम्बन्धमें आपसे सलाह लेनेके लिए आपके समीप आकर उपस्थित हो, तो आपको चाहिए कि श्री वीर परमात्माकी आज्ञाको अपनी दृष्टिके सम्मुख रखकर उसे उचित उत्तर देवें और उसकी पंच नियत करनेकी योजनामें कुछ संशोधन परिवर्तन करना आपको उचित अँच पड़े तो करनेकी सम्मति दे देवें कि जिससे इस विषयमें प्रयत्न करनेवाले सज्जन दोनों पक्षोंके विचा. रोंको एक करके जितनी जल्दी हो सके पंच नियत करनेके काममें सफलता प्राप्त कर सकें और सारे भारतवर्षके श्वेताम्बर-दिगम्बर भाईयोंसे यह प्रार्थना है कि, यह जमाना आन्दोलनका है, इस लिए आप सबलोग इस प्रार्थनापत्रमें सूचित किये हुए आन्दोलनमें अवश्य शामिल हू जिए और अपने मुखिया भाईयोंसे कहिए तथा उनको चिट्ठियाँ लिखिए कि हम लोग धर्मके निमित्त लड़नेको राजी नहीं हैं और आग्रहपूर्वक प्रेरणा करते हैं कि देशके नेताओं द्वारा सारे झगड़ोंका फैसला कराया जाय । श्वेताम्बर भाइयोंको अपने श्वेताम्बर अगुओंके पास और दिगम्बर भाइयोंको दिगम्बर अगुओंके पास पत्र भेजना चाहिए । इस तरह जब उनके पास हजारों पत्र एकटे होंगे तब उनका इतना प्रभाव पड़ेगा कि दोनों पक्षोंके अगुओंको यह बात माननी ही पड़ेगी। लोकमत बहुत बड़ा भारी बल है। इस बलसे हम जो चाहें उसी काममें सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इस लिए प्यारे भाइयो, अपने अगुओंके पास पत्र भेजकर उनपर प्रभाव डालो, अपने गाँवों और शहरों में सभायें करके इस विषयमें लोकमत जागृत करो, और आपमें जितनी शक्ति हो, उस सबको लगाकर ऐक्यबळको दृढ करो। . क्योंकि जहाँ एकता है वहीं शक्ति है, जहाँ एकता है वहीं सुख है, जहाँ एकता है वहीं स्वातन्त्र्य है, जहाँ एकता है वहीं गौरव है । और एकता ही महावीरका ' संघः' है। एकता ही मुक्तिका 'मंत्र' है। इस एकताके बिना किसीका काम नहीं चल सकता। . इस एकताको छोड़कर क्या आप सुखी हो सकेंगे ? For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.522827
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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