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श्रीवर्द्धमानाय नमः
अंक
HINI
७-८
जनहितैषी
जुलाई, अगस्त १९१६
जैनसमाज। तीर्थक्षेत्रोंके झगड़े, स्त्रियोंकी अज्ञानमय-दु:खमय दशा, शास्त्रोंकी रक्षा और प्रचारके काममें लापरवाही और अगुओंकी भेडियाधसान' बुद्धिके अन्धेर; ये सब बातें देखकर शासनदेवी धनवानों, पण्डितों और बाबुओंको सम्मिलित शक्तिसे उद्योग करनेके लिए समझा रही है।
सं०-नाथुराम प्रेमी।
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