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________________ रामनाथ । लोगोंहीके साथ रहता है- क्या तुम्हें बड़े आदमी नहीं मिलते ? " रामनाथने उद्वेगरहित होकर कहा - " बड़े आदमियोंसे मिलने वाले तो सैकड़ों लोग हैंबेचारे इन गरीबों से मिलनेवाला कौन है ? " लक्ष्मीने फिर कुछ नहीं कहा । वह यत्नपूर्वक शोक-संतप्त चांडाल-वधूको सान्त्वना देकर और दोपहर को महाभारत सुना सुना कर उसका मन बहलाने लगी । [२] परीक्षाका समय आते ही रामनाथ स्कूल के कामसे छुट्टी लेकर परीक्षा देनेके लिए इलाहा - वाद गया । जिस दिन वह परीक्षा देकर घर लौटा उसके दूसरे दिन प्रातःकाल नयेगंजके शेखइमामीने आकर रोते रोते कहा - " आपकी गैरहाजिरी में जमीदार बाबूके कोपसे मेरे ऊपर एक बड़ी विपद आ पड़ी है । मेरे घरको एक सरकारी संकीर्ण रास्ता गया है । उसके दोनों ओर ४-५ फैली हुई शाखाओंके बेरी आदि के पेड़ थे उनके कारण रास्ता बहुत संकीर्ण होगया था और चलने वालोंको तकलीफ होती थी, इस कारण मैंने वे वृक्ष चार पाँच महीने पहले कटाव दिये । इस समय बाबू बदरीप्रसाद जमीदार उस जरासी बातको लेकर झगड़ा करके मेरा सर्वनाश करनेपर उतारू हुए हैं । यहाँ तक कि अब स्त्रियोंके सन्मानकी रक्षा करना भी मेरे लिए कठिन हो गया है 1 । गये रामनाथ उसके साथ घटना स्थल पर और वहाँपर अपनी आँखोंसे सब देखभालकर और उसके मुखसे जमीदार के अन्याय और अत्याचारकी बातें सुनकर अत्यंत क्रोधित हो उठे । ऐसे नरा - धम और स्वार्थी मनुष्यसे मिन्नत करके मामल तय करा लेने के विरुद्ध उनका मन एकाएक उग्र हो गया । रामनाथने शेखइमामी से व्यग्रता - Jain Education International ३१७ के साथ पूछा – “कोई गवाह है ? " शेख - इमाम ने कहा "हाँ मेरे मामा शेख कल्लू हैं जो जमीदार के यहाँ नायव हैं, एक और गवाह है परन्तु वह भी जमीदारके अनुग्रह से पलता है । " रामनाथ शेखकल्लूको अच्छी तरह जानते थे । एक समय वह उनके मामा के यहाँ गुमास्ता था। इस समय कामकाज की होशियारीके का - रण वह बदरीनाथ बाबूके यहाँ सबसे बड़ा कचारी बन गया है । शेख कल्लूकी उमर बीत गई है, वह सब तरहसे शान्त और बुद्धिमान होने पर भी प्रजा -पीड़नके काममें बिलकुल मालिककी प्रसन्नता के लिए भी इस तरह अपममताहीन और धर्मरहित है । बहुत से लोग ना स्वभाव एकदम बदल देते हैं । रामनाथ उसी समय उसी वेषसे, दोपहर की धूपमें, हलसे जोते हुए उत्तप्त खेतोंको लांघता हुआ शेखइमामी के साथ सिंहपूरकी जमीदारी कचहरी में जा पहुँचा । दरवाजे पर खड़े हुए पहरेदारोंको लाँघ करके रामनाथ कचहरी के भीतर गया । उस समय जमीदार बाबू स्नान भोजन के लिए भीतर चले गये थे । नायब गुमास्ता लोग भी जल्दी जल्दी शेष कामको पूरा करके उठनेकी तैयारी कर रहे थे । जमीदार के नायव अलपाकाकी एक टिहुनी तक मिरजाई पहिने हुए हुक्का पी रहे थे और एक गुमास्ता सिरपर फेल्प टोपी, बदन में एक अँगरेजी ढंगका कोट और नीची धोती पहने हुए पास खड़ा होकर एक रजिस्ट्री की दलील पढ़कर सुना रहा था । एक मैलीसी कमीज और स्लीपर जूता पहिने शुष्क और कठोर - मूर्ति रामनाथके अकस्मात् सामने आकर खड़े हो जानेसे शेखकल्लूका हुक्का पीना रुक गया वह विस्मित होकर कहने लगा- “क्या है ?” रामनाथने भूमिका वगैरह न बाँधकर पास ही खड़े हुए शेखइमामीको एकदम सामने खींचकर, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522826
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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