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AMITAMARHI
जैनहितैषीHTTREETTERESTHETAN
रामनाथके साथी " बूढ़े तोतेको पढ़नेका शौक को कुछ दुःख नहीं हुआ; किन्तु पड़ौसकी स्त्रि चर्राया है। " कह कर उसकी हँसी उड़ाया योंके कोलाहलमय संसर्गसे वह एकदम कैसी नि करते थे। परन्तु रामनाथ उनकी हँसी-दिल्लगीको दयताके साथ बंचित कर दी गई इस बातर्क कानों परसे उड़ा दिया करता था और इस याद आते ही वह रामनाथको किसी तरह क्षम विषयमें कभी उन्हें उत्तर न देता था। नहीं कर सकी । रामनाथने घर आते ही उस
छह महीनाके पीछे वह एक विचित्र काम की आँखोंसे छल-छल करके गिरते हुए जलके कर बैठा-अपने सगे सम्बन्धियोंसे कुछ सलाह देखकर कहा-" क्यों क्या हुआ ?" लिये बिना ही, बिलकुल सादी रीतिसे, एक रामनाथने पत्नी प्रत्युत्तरमें निःसंकोचभावर मृत्यु-शय्यापर पड़ी हुई विधवा स्त्रीकी अस- हँसकर कहा-“परचर्चा और कुत्सित पर हाया कन्याके साथ विवाह करके उसे अपने निन्दामें जो तुम्हारे समयका अपव्यय (बेजा. शून्य घरमें ले आया। विवाहके दूसरे दिन ही खर्च ) होता था, वह बंद हो गया, अच्छा ही विधवाकी मृत्यु हो गई । उसने मरते समय दामा- हुआ । अब तुम निश्चिन्त होकर पढ़ने लिखने दको आशीर्वाद देकर अत्यंत शान्तिपूर्वक अंतिम मन लगाओ।" स्वास छोड़ी । इस विवाहके कारण रामनाथकी इन बातोंसे लक्ष्मीको कुछ अधिक संतो बड़ी निन्दा हुई; पर उसने इसकी तिलभर नहीं हुआ । रामनाथ जब स्कूलको जाता थ भी परवा न की।
तब वह अपनी मृत साताकी याद कर करके -उधर रामनाथके विवाहके दूसरे ही दिन कुछ समय खूब रो लिया करती थी। रामनाथ बाबू बदरीप्रसाद जमीदारने एक दूसरे ग्रामके यथा समय स्कूलसे आकर उसको मृदु-भर्त्सना वृद्ध जमीदारके अक्षरशत्रु पुत्रके साथ अपनी के साथ साथ थोड़ी बहुत सान्त्वना देता था प्रियतमा कन्याका बड़ी धूमधामके साथ विवाह एक दिन रामनाथ उस मृत चांडालकी निः कर दिया। इस विवाहोत्सवमें रामनाथको छो- संतान विधवा स्त्रीको घर ले आया और उसे इकर गांवके सभी आदमी निमंत्रित हुए थे। अपनी माता मानकर घरमें रख लिया। लक्ष्मी
कुछ महीने बाद एक दरिद्र कुटुम्बहीन और क्रोधसे जलकर कहने लगी- “ क्या नीचोंके समाजसे परित्यक्त चांडालकी मृतदेह उठाने सिवा तुम्हें कोई नहीं मिलता ? संसारमें
और उसके अग्निसंस्कार करनेके अपराधमें राम- नीच ही तुम्हारे सब कुछ हैं ! " नाथ अत्यंत निठुराईके साथ जाति-च्युत कर दि- रामनाथने हँसकर कहा-“ हाँ नीच ही या गया । इससे जब अड़ौस-पड़ौसके लोगोंने उ- हमारे सब कुछ हैं । किन्तु अब तुमको एक सके बैठकखानेमें आकर चिलम तमाखूकी काम करना होगा--दो-पहरके समय इस धूम मचाने और पढ़नेमें व्याघात पहुँचाना बंद बेचारीको महाभारतका शान्तिपर्व थोड़ा थोड़ा कर दिया, तब रामनाथ समाजको धन्यवाद दे सुनाना होगा और उसके मनको बहलाना कर एक बहुत बड़े आरामका अनुभव करने ल- होगा--समझी ?" गा। परन्तु घरके भीतरकी दशा ठीक इसके पड़ौसिनियोंकी पर-चरित्र-सम्बन्धी अन्धविपरीत हुई-दासियाँ घरका काम करनेके लिए चर्चा-समिति द्वारा गाठत मन्तव्यके अनुसार नहीं आती हैं, इस बातसे परिश्रमी पत्नी लक्ष्मी- लक्ष्मीने कहा- “ तुम्हारा व्यवहार ऐसे छोटे
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