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________________ mmmmmmmmmmmumRA मेरा दक्षिण-प्रवास। २९७ डाके जैनियोंकी पद्धतिको स्वीकार करेंगे तो स्वेच्छाचारिणी होजायेंगी और फिर वे भयंकरसे समाजकी बड़ी भलाई हो। __ भयंकर पाप करनेमें न हिचकेंगीं। उनकी आशा दक्षिणकनाड़ाके जैनोंमें एक बात यह और तृष्णा बढ़ती जायगी और परिणाम यह होगा कि स्त्रियाँ एकके बाद दूसरा, दूसरेके बाद अच्छी है कि उनमें प्रायः बाल्यविवाह प्रच तीसरा और तीसरेके बाद चौथा पति करके इसी लित नहीं है । लड़कोंकी उम्र २४-२५ और तरह आगे आगे बढ़ती जायेंगीं। लेखकको इस लड़कियोंकी १४-१५ की हो जाती है तब ब्याह बातके जाननेकी बड़ी इच्छा थी कि क्या विहोता है। इस कारण उनका दाम्पत्यजीवन सुखसे धवा-विवाहका सचमुच ही ऐसा भयंकर परिणाम बीतता है। होगा ? पर इधर विधवा-विवाहको जायज समहमारे यहाँ तो ये बातें बड़ी भयानक और पापका झनेवाली जातिको देखकर और उन विधवाओंमें, कारण समझी जाती हैं । लड़की, और उसका जो पुनर्विवाह करती हैं, किसी प्रकारका भयंकर १४-१५ वर्षकी उम्रमें ब्याह ! महान् अधर्म ! पाप या उन अप्राकृतिक कल्पनाओंको, जो निमहान् पातक ! अधर्म और पातकसे बचनेके षेधाकोंकी ओरसे की जाती हैं, न होती हुई सुनलिए जहाँ दस दस, ग्यारह ग्यारह वर्षके लड़के कर उसे जान पड़ा कि निषेधकोंकी वे सब कल्पनायें ब्याह दिये जाते हैं, उन जातियोंकी दशा क्यों न अस्वाभाविक और व्यर्थ हैं-उनमें तथ्य नहीं है। और भयंकर हो ? जो बेचारे अभी बच्चे हैं, ब्याह क्यों किसी खास व्यक्तिको लेकर यदि वे सबके लिए ही किया जाता है इसे समझते नहीं, उनका ब्याह एकसा समझते हैं तो फिर ऐसे अन्याय करनेवालोंके कर देना उनकी सारी जिन्दगी बरबाद करना है। उदाहरण पुरुषों और जिनका पति जीता है ऐसी इधर 'विधवा-विवाह' की रीति भी प्रचलित स्त्रियोंमें भी मिल सकते हैं । इस युक्तिको देकर है। इस प्रथाका कबसे प्रारंभ हआ और जबरन किसीके सिरपर दोष मढ़ना और उस उसकी आवश्यकता पड़ी इसका पता नहीं चलता जातिको घृणासे देखना अच्छा नहीं । उन्हें कोई है। सुना जाता है कि किसी भट्टारकने इस रीति ऐसा प्रबल युक्तिवाद उपस्थित करना चाहिए को जारी किया था। तलाश करनेसे जाना गया जिससे विधवा-विवाहके समर्थकोंका पक्ष कि उत्तरप्रान्तकी तरह इधर — विधवा-विवाह' , निर्बल पड़ जाय और उन्हें विचार करनेका करने वालेको जातिच्युत नहीं करते हैं । जातिमें मौका मिले . मौका मिले। उसके साथ एकसा ही बर्ताव किया जाता है। उत्तरप्रान्तकी तरह इस ओर कन्या-विक्रयकी सब उसके साथ बैठकर खाते पीते हैं। दक्षिण प्रथा नहीं है; हाँ, वृद्धविवाहकी प्रथाने अवश्य प्रान्तके जैनोंकी यह उदारता देखकर आश्चर्य होता ही इधर अपना पैर पसार रक्खा है । पर वह है। उत्तरप्रान्तमें यदि कभी कोई ऐसा कर बैठता उत्तरप्रान्तसे बहुत ही थोड़े परिमाणमें है । है तो वह घोरपातकी समझ लिया जाता है किसी बूढ़ेके पास अच्छी सम्पत्ति देखकर किसी जन्मभर उसे किसी तरह जातिमें शामिल होनेका किसी लोभी माता पिताका मन चल जाता है फिर सौभाग्य नहीं मिलता है। और लड़की धनिकके घरमें जानेसे सुखसे रहेगी, कुछ लोगोंका कहना है कि 'विधवा-विवाह? इस विचारसे वे अपनी लड़कीको बूढ़ेके साथ प्रचलित होनेपर स्त्रियाँ अधिक पापिनी और ब्याह देते हैं । जाहिरमें कोई रुपया पैसा नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522826
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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