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________________ २९६ ? पर बड़ा प्रेम था । उसके एक मात्र लड़का था - वह अपने भाई के पास आकर बोली - "भैया, जहाज के लिए तुम्हें नरबलिहीकी जरूरत है न उसके लिए इतनी चिन्ताकी क्या जरूरत है ? मेरे लड़केको तुम खुशी के साथ इस काम में ले सकते हो । बहनका यह प्यार - यह अपूर्व स्वार्थत्याग देखकर भूतपाण्डि बहुत विस्मित तथा प्रसन्न हुआ । फिर वह अपने भानजेको बलि देनेके लिए जहाजपर ले गया । ज्यों ही वह बलि देने को तैयार हुआ त्यों ही यक्षने प्रगट होकर कहा - " बस मैं संतुष्ट हो गया । मुझे अब नरबलि नहीं चाहिए। इसके बदले मैं तुमसे यह चाहता हूँ कि तुम अपनी सब सम्पत्तिका मालिक अपने भानजेको बना दो और आगे के लिए अपने राज्य भर में यह कानून जारी कर दो कि अबसे पिताकी सम्पत्तिका अधिकारी पुत्र न होकर भानजा ही बनाया जाय । " भूतपाण्डिने यक्षके कथना नुसार वैसा ही किया। तभी से इस प्रान्त में भान - जेके मालिक होनेकी रीति चली आती है । इसके बाद भारतवर्ष में वृटिश शासन स्थापित होने के समय जिन्होंने जिस रीतिको पसंद किया उनके लिए वैसे ही कानून बना दिये गये और बाकी प्रजाके लिए ‘ हिन्दू–ला ’ जारी किया गया इस दन्तकथा में सत्यांश कितना है वह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है। पर इतना अवश्य है कि कोई ऐसी घटना अवश्य हुई है कि जिसके इस कानूनकी सृष्टि हुई । अस्तु, जो हो, पर इस समय तो दक्षिणकनाडा के जैनों के लिए यह कानून कालसमान हो रहा है। उन्हें इसके विरुद्ध अपनी पुकार सरकार तक अवश्य पहुँचानी चाहिए। इसी में उनका हित है और ऐसा करनेसे ही वे चिरकाल तक जी सकते हैं । । जैनहितैषी । दक्षिणकनाड़ाके जैनियोंमें तीन जातियाँ हैं । जैन, शेट्टी और पुरोहित । इनमें जैन और Jain Education International 1 शेट्टी जातियोंमें ४० - ५० वर्ष पहले परस्पर विवाह सम्बन्ध होता था, पर अब प्रायः नहीं होता है । कभी कोई ऐसा विवाह हो जाता है । पुरोहित लोग जातिके ब्राह्मण हैं । इस जाति लोगों के मैसूरप्रान्तके श्रवणबेलगोला आदि स्थानोंमें ज्यादः घर हैं । इनका विवाह सम्बन्ध इन्हींकी जातिमें होता है । ये जैन ब्राह्मण या उपा ध्याय कहलाते हैं । ये जैन मंदिरों में बतौर माली व्यास के रहते हैं । भगवानकी पूजन वगैरह ये ही लोग करते | पूजनमें जो द्रव्य चढ़ाया जाता उसे ये लोग ले लेते हैं । यहाँके जैनी इनके साथ खानपानमें परहेज नहीं करते हैं, वे इनके साथ बैठकर अच्छी तरह बिना संकोचके खाते पीते हैं । ये लोग जातिके ब्राह्मण हैं । ये कबसे जैनी हुए इसका कोई विश्वास योग्य प्रमाण नहीं मिलता है । कुछ लोगों का कहना है कि ये बहुत पुराने समयसे जैनधर्म ही पालते आते हैं। इधर जो अजैन ब्राह्मण जातियाँ हैं इनका उनके साथ कोई सम्ब न्ध नहीं है । शास्त्रों में जगह जगह मामेकी लड़कीके साथ ब्याह करने की जिस रीतिका जिक्र आया है वह रीति यहाँके जैनियोंमें अबतक जारी है । गोत्र वगैरहका झगड़ा इधर बिलकुल नहीं है । इधर इन बातों कोई हानि नहीं समझी जाती और तेकी है । उत्तरप्राँतकी कुछ जातियाँ इस विषसचमुच यह रीति बहुत उत्तम और सबके सुभीयमें बड़े ही अन्धरेमें पड़ी हुई हैं । उन्होंने इन साधारण बातोंको इतना महत्व दे दिया है कि जिसका कुछ ठिकाना नहीं । परिणाम इसका यह हुआ कि ये बातें आज उन जातियों की काल बन गई । साधारण लोगोंके लिए इन बातों से बड़ी बड़ी कठिनाइयाँ. उपस्थित होगई हैं । उत्तरप्रान्तकी जैन जातियाँ दक्षिणकना For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522826
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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