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________________ २६० TILARIAAMAILOOLERATOILE जैनहितैषी देकर उनमें स्वाभिमान जाग्रत किया, उनके जा पहुँची । उसने सोचा कि झाड़पर चढ़नेके आज्ञानान्धकारको दूर करके उनमें विद्याभिरु- सिवा रक्षाका और कोई उपाय नहीं है । चढ़ना चि उत्पन्नकी, गुलामीके भावोंसे भरे हुए उनके तो आता नहीं है पर अब तो किसी तरह चढ़ना दिलोंमें स्वाधीनताका जोश डाला, पाठशालाको ही होगा, नहीं तो बस मरी। अब चढ़ना ही होउन्नत करने, सुन्दर इमारतें बनाने और शिक्षाको गा, ऐसा सोचकर वह झाड़पर चढ़नेका प्रयत्न फलवती बनानेके लिए उन्होंने भरपूर प्रयन्न करने लगी और चढ़ गई । विद्यार्थियो ! तुम्हें भी किया । वे बारह बारह घंटे तक संस्थाका काम सदैव ऐसा ही प्रयत्न करना चाहिए।" किया करते थे। आर्मस्ट्राँगका मत था कि ल- महात्मा आर्मस्ट्रांग सच्चे कर्मवीर थे। वे एक डके लड़कियोंके साथ पढ़नेसे दोनोंके विचारोंमें बड़ी संस्थाको बड़ी ही उत्तम रीतिसे चलाते थे। गंभीरता और आचारोंमें सभ्यता आती है; अत- इससे कोई यह न समझे कि उस संस्थांके लिए एव उनके विद्यालयमें लड़के लड़कियाँ दोनों उनके पास कोई खजाना भरा पड़ा था, या कोई साथ पढ़ा करती थीं। वे अपने विद्यार्थियोंको उन्हें घर बैठे द्रव्य दे जाता । नहीं, संस्थाके. शिक्षा दिया करते थे कि जिसको जो काम खर्चके लिए उन्हें प्रवास करना पडता था, गाँव. आता हो और जो जिस कामको अच्छी तरह गाँव नगरों-नगरों भटकना पड़ता था, व्याख्यान कर सकता हो, वह उसे ही करे और सदा देना पड़ते थे, लोगोंको अपना उद्देश समझाना उद्योगशील रहे । जो सीखना जानता हो वह पड़ता था और समाचार पत्रोंमें लेख लिखना पड़ते अच्छी तरह सीखे, जो सिखाना जानता हो वह थे। आप स्वतः समझ सकते हैं कि किसी आश्रअच्छी तरह सिखावे । जिसे बढ़ईके काममें म या संस्थाके लिए पैसे इकटे करना कोई सहरुचि हो वह बढ़ईका काम करे और जिसे ज काम नहीं है-उसके लिए बड़ी सरगर्मी, अपार जूतोंपर पालिश करना आता हो वह पालिश बुद्धिमत्ता, सच्चरित्रता और चतुराईकी आवश्यकता करे । जनरल आर्मस्ट्राँग ऐसे ही सत्कर्मों के ध्येय है । उन्होंने १२ वर्षों में संस्थाके लिए १८ इमारविद्यार्थियोंके सन्मुख उपस्थित किया करते थे । तें बनवाई और बहुतसा शिक्षणापयोगी वे कहते थे कि नीग्रो मनुष्य हैं; यद्यपि वे सदोष सामान खरीदा । इन सब कामोंके लिए उन्होंने हैं, अशिक्षित हैं, परन्तु उनमें दोषोंके दूर करने, इसी तरह पैसा एकत्रित किया था। इस तरहके अपार शिक्षित और सुसभ्य होने की योग्यता भी है। और आविश्रान्त परिश्रम द्वारा उन्होंने नीयोलोगोंवे लड़कोंको धर्म और नीतिकी शिक्षा देकर उन्हें में योग्यता बढ़ाई और उनको हीनावस्थासे धर्मात्मा और सदाचारी बनानेका सदैव प्रयत्न खींच कर उन्नत अवस्थाके मार्गपर आरूढ़ किया करते थे। उनमें उत्साह लानेके लिए कभी कर दिया। कभी वे कहानियाँ भी सुनाया करते थे। उनकी जनरल आर्मस्ट्राँगको इस काममें सफलता एक कहानी नीचे लिखी जाती है:- मिलते देखकर और भी कई लोगोंने उनका अनु " विद्यार्थियो, एक बिल्ली थी, उसे अभीतक करण किया । हेम्पटन विद्यालय एक प्रकारकी झाड़पर चढ़ना नहीं आता था । एकवार उसके प्रयोगशाला या अनुभव प्राप्त करनेकी जगह थी। पीछे कुत्ता लगा,तब वह भागते भागतेपेड़के समीप इसमें शिक्षा पाकर और काम सीखकर और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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