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जनरल आर्मस्ट्राँग ।
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लिए खूब जगह पड़ी थी, पर वह जंगलमय थी और उसके साफ करनेके लिए बहुत परिश्रमकी जरूरत थी । अतएव इन यूरोपीय लोगों को - जो वहाँ जाकर जमींदार बन गये थे - खेती आदिके कामोंके लिए मज दूरों की जरूरत हुई । इस कामके लिए आफ्रिका - के नीग्रो या हबशी लोग जहाजों में भर भरकर लाये जाने लगे । यह छँदा खूब चल पड़ा व्यापारी लोग आफ्रिका जाकर वहाँसे बेचारे नीग्रो लोगोंको भेड़-बकरीके समान बलपूर्वक भर लाते थे और अमेरिका आकर उन्हें मनमानें दामोंपर बेचते थे । पहले यह रोजगार पोर्तुगीजों के हाथमें था, पर पीछेसे अँगरेजों के हाथमें आग या । यह दास्य-विक्रयका रोजगार दिनपर दिन बढ़ता ही गया और लगभग ढाईसौ वर्षोंतक जारी रहा । उस समय इन दासों की संख्या ४० लाख से ऊपर हो गई थी । नीग्रोलोगोंपर उनके प्रभु या मालिक जो जो अत्त्याचार करते थे उ नको सुनकर रोमांच हो आता है । वे बेचारे पशुओं के समान बाजार में खड़े करके बेचे जाते थे, निर्दयतापूर्वक मारेपीटे और कभी कभी बध तक किये जाते थे ! और उनकी स्त्रियोंपर पैशाचिक अत्याचार होते थे ! कोई उनकी रक्षा करनेवाला न था । कहनेका तात्पर्य यह है कि न तो वे मनुष्य समझे जाते थे और न उसके प्रा णों का कोई मूल्य गिना जाता था। यह आसुरिक अत्याचार कैसा भयंकर होगा, इसका पाठक स्वतः अनुभव कर सकते हैं । इसी अमानुषिक अत्याचारको दूर करनेके लिए अमेरिका के कुछ सहदय सज्जनोंने उक्त आन्दोलन उठाया था ।
उत्तर प्रांत निवासी गोरे तो नीग्रोलोगोंको दासत्वसे मुक्त कर देना चाहते थे पर दक्षिणप्रान्त निवासी इसके घोर विरोधी थे । यह विरोध यहाँ तक बढ़ा कि अंतमें उत्तर और दक्षिण प्रान्तों में
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परस्पर युद्धकी भेरी बजने लगी और दक्षिणप्रांतनिवासी धनी लोगों के चुंगल से लगभग ४० लाख नीग्रोलोगों को छुड़ाने के लिए युद्ध प्रारंभ हो गया । अंत में उनका यह उद्देश सफल हुआ और पहली जनवरी सन् १८६३ को ढाईसौ वर्षोंकी गुलामी के बाद नीग्रोलोगों को स्वाधीनता दे दी गई ।
इस युद्धके समय अमेरिकाके प्रेसीडेण्ट लिंकनको युद्धोपयोगी मनुष्यों की बड़ी जरूरत थी, इस लिए उस समय हमारे चरितनायकने आगे बढ़कर नीग्रो लोगों की सहायतार्थ युद्धभूमि पर पैर रक्खा । कप्तान आर्मस्ट्राँगने इस कामको बड़े उत्साह और प्रेमके साथ किया - सुशिक्षित और धर्मवान् लोगोंको ऐसे ही काम से प्रेम होता है । " नीग्रोलोग हमारे भाई हैं और उनको दासत्वसे छुड़ाने के लिए हम लड़ रहे हैं । " हृदयमें रखकर वे अपने कर्तव्यपालनमें लगे हुए थे । वे कभी निराशा नहीं हुए । इस भावनाका उल्लेख उन्होंने अपने एक पत्र में इस तरह किया है
इस भाव
“ मैं किस लिए लड़ रहा हूँ ? कानूनके अनुसार नीम्रो लोग मुक्त हो चुके हैं, परन्तु दक्षिण प्रांतवाले इस कानूनको मान्य नहीं करते हैं । मैं दीन जनों के लिए उनकी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा हूँ । यदि मैं इस युद्धमें मारा जाऊँगा तो समझँगा कि मेरे जीवनका उपयोग एक सत्कार्य के लिए हुआ । क्योंकि यह महायुद्ध पवित्र तत्व के लिए हो रहा है । इस समय दक्षिण के लोगोंकी जगह जगह विजय हो रही है; परन्तु मुझे दृढ़ भरोसा है कि हमारी बाजू सत्यकी है, अतः अन्तमें हमें ही यश मिलेगा । जब मैं इन नीग्रो लोगों की ओर देखता हूँ, तब मुझे यही भावना होती है कि ये मनुष्य हैं - स्वाधीनता के अधिकारी हैं; इन्हें गुलामीमें रखनेका न किसीको अधिकार
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