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THAmausammam जैनहितेषी
in ATTUOR
पुरुषकी शय्यापर जानेका विचार भी पसंद न उसे पुनर्विवाह करनेकी इजाजत दे या उसका निषेध आयगा । ( इस बात परसे लेखककी शुभानष्ठाका करे । तात्पर्य यह है कि समाजकी आज्ञाके सिवाय ख्याल आप कर सकेंगे ) इसके सिवा उनका यह स्त्री-पुरुष खुदमुख्तारीसे पुनर्विवाह न करें। उनकी भी कहना है कि विधवाओंको केवल उदरपोषणके यह बात भी उनकी शुभनिष्ठाको प्रकट कर रही है । लिए ही पुनर्विवाहका आश्रय न लेना पड़े, इसके "इस कथनका उद्देश्य क्या है सो भी ध्यानमें लिए समाजको चाहिए कि वह जगह जगह विध- रखना चाहिए । उनका मत है कि, हम यदि सभावाश्रम खोले और उनमें उनके उदरपोषणके सिवा के कानून बहुत सख्त रक्खेंगे तो लोग इस उन्हें आत्मज्ञान देनेका प्रबंध भी किया जाय, जिससे धर्मको छोड़कर अपने सुभीतेवाले किसी अन्य वे उस ज्ञानके जोरसे अपने विकारोंपर जय प्राप्त धर्ममें चले जायेंगे । इस लिए यह उचित समझ कर सकें।
पड़ता है कि पहली दूसरी और तीसरी इन तीनों " अब यह देखना चाहिए कि लेखक महा- श्रेणियोंमें समाजके सारे मनुष्योंका समावेश किया शयने विवाहकी बकालत किस रूपसे की है। उ- जाय । ब्रह्मचारियोंका दर्जा सबसे ऊँचा है। विवान्होंने कहा है कि यदि हम लोग बालविवाह या वृद्ध हित स्त्रीपुरुषोंकी गणना दूसरे दर्जेमें की जा सकती विवाहको बंद न रख सकेंगे, तो बालविधवाओंकी है और जो पुनर्विवाह करते हैं वे तीसरे दर्जेमें हैं। संख्या बढ़ती ही जायगी और उनके उदरपोषण- क्या यह न्यायसंगत नहीं हैं ? ऐसा करनेसे उत्तम के लिए कुछ न कुछ विचार करना ही पड़ेगा। अतः मध्यम और कनिष्ठ तीनों ही प्रकारके लोग जैन एव लेखककी राय है कि उनके लिए विधवाश्रम धर्मको पालन कर सकेंगे । यदि ऐसा न किया खोलकर उन्हें इन्द्रियनिग्रहकी शिक्षा दी जाय। जायगा आपद्धर्मके रूपमें भी विधवाविवाहकी पर जिन बहुत ही कम उम्रवाली स्त्रियोंसे इन्द्रिय- आज्ञा न दी जायगी तो बहुतसे स्त्रीपुरुष आर्यनिग्रह न हो सके, उन्हें समाज को चाहिए कि पुन- समाजी या किश्चियन आदि बन जायँगे और विवाह की आज्ञा दे। यह बात ध्यानमें रखने बनते हैं। योग्य है कि यदि बालविधवायें न हों तो विधवा-वि- “यहाँपर मैं आपको एक बात याद कराता वाह की जरूरत ही न रह जाय। विधवाविवाह पस- हूँ कि हिन्दूधर्मवालोंने भी ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य, न्द न हो तो ऐसा प्रबंध करना चाहिए जिससे बाल- शूद्र ऐसे चार दर्जे योग्यतानुसार रक्खे हैं और विधवायें ही न होने पावें और ऐसा प्रबंध करना स- उत्तम ब्राह्मणसे कनिष्ठ शूद्रतक को हिन्दूधर्ममें माजके हाथमें है।
स्थान दिया है । ऐसी व्यवस्था करनेसे जैनसंख्याकी " एक ध्यान देने योग्य बात लेखक महाशय कमी रुक जायगी । यदि आप कहेंगे कि क्या यह लिखते हैं कि मुझे यह बात पसंद नहीं विधवाविवाह जैसे नीच काम करनेवालोंको हम है कि प्रत्येक स्त्री-पुरुष अपनी इच्छासे जैनसमाजमें रक्खेंगे ? तो मैं पूछता हूँ कि क्या पुनर्विवाह करें । ऐसा करनेसे समाजमें अव्यवस्था हो व्यभिचार, शराब खोरी, चोरी, दगाबाजी इत्यादि जायगी । समाजको चाहिए कि जो स्त्री फिरसे महानीच पाप जैनियोंमें कम होते है ? और ऐसे विवाह करना चाहती है उसकी उम्र क्या है, स्थिति पाप करनेवाले क्या जैनसमाजसे बहिष क्या है, उसकी विवाहित स्थिति कितने समयतक किये जाते हैं ? क्या यह बात सच नहीं है कि कायम रही थी इत्यादि बातोंका विचार करके फिर सच्चे जैन तो हजारमें एक दो ही हैं? तथापि व्यव
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