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विविध प्रसङ्ग।
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गत अधिवेशनमें जैनीमें मृत्युसंख्या अधिक था कि पं० लालनके स्टेजपर व्याख्यान हों; क्यों हाती है, इसकी जाँचके लिए एक कमेटी परन्तु दूसरा पक्ष इसका विरोधी था । सभापति बनाई थी। उक्त कमेटीने इससमय अपनी महाशयने बड़ी काठनाईसे विरोध शान्त किया रिपोर्ट छपाकर बाँटी थी । पाँचवाँ उपाय इस और उस दिनका काम ज्यों त्यों करके समाप्त रिपोर्टकी सूचना पर ध्यान देना बतलाया गया। किया । पं० लालन स्वयं ही उस दिन न आये; रिपोर्ट बड़े महत्त्वकी है; परन्तु अफसोस है कि उन्होंने अपने कारण कान्फरेंसके काममें बाधा वह केवल बम्बई शहरकी है। सारे देशके जै- पहुँचे, यह पसन्द न किया। उनके व्याख्यानोंके नियोंकी मृत्युसंख्याक विषयमें भी इसी प्रकारकी विना कान्फरेंसकी स्टेज सूनीसी रही। अवश्य एक रिपोर्ट प्रकाशित करनेकी जरूरत है। ही वीतराग साधुओंको-धर्मके सर्वाधिकारियोंको आशा है कि इसकी ओर और और सभायें भी इससे सन्तोष हुआ होगा । ध्यान देंगी।
१७ एक सेठजीके पत्रका उत्तर । १६ तीसरी बैठकमें कुछ विघ्न। हमारे एक शुभचिन्तक सेठजीने-जो जैनस
ता० २३ अप्रैलको सभाका काम ११ बजेसे माजके बहुत ही प्रतिष्ठित पुरुष समझे जाते हैंशुरू होनेवाला था और लोग ठीक समयपर अभी कुछ ही दिन पहले हमें एक पत्र लिखेनेकी उपस्थित भी होगये थे; परन्तु ढाई बजेतक काम कृपा की थी जिसमें उन्होंने जैनहितैषीके पहले बन्द रहा । श्रीयुत पं० फतहचन्द कपूरचन्द अंकमें प्रकाशित हुए 'जनोंकी वर्तमान दशाका लालनका नाम पाठकोंने सुना होगा। आप श्वे- चित्र' शीर्षक लेखके सम्बन्धमें हमें उलहना दिया ताम्बर समाजके बड़े नामी वक्ता, निःस्वार्थ था और हमें सदिच्छावश अनेक उपदेश देनेका सेवक और विद्वान् पुरुष हैं । आप कई बार कष्ट भी उठाया था। पत्रका उत्तर हमने जो कुछ यूरोप और अमेरिकाकी सफर कर आये हैं। दिया था, वह यहाँ प्रकाशित कर दिया जाता आपका हृदय बहुत उदार है और समस्त है । इससे उन सज्जनाको भी संतोष हो जायगा जैनसमाजकी उन्नतिके लिए आप निरन्तर जिन्होंने हमें सेठजीके ही समान उलहने देने या प्रयत्न किया करते हैं । कई वर्ष हुए उपदेश देनेका कष्ट उठाया था और हम अवपालीतानेमें आपकी इच्छाके विरुद्ध कुछ जैन काशाभावके कारण सबको पृथक् पृथक् उत्तर न विद्यार्थियोंने आपकी पादपूजा की थी, इस लिख सके थे । इससे हमारे पाठकोंकी भी अनेक कारण पादपूजाके रजिस्टर्ड अधिकारी कुछ शंकाओंका समाधान हो जायगाःश्वेताम्बर साधुओंने आपके विरुद्ध आन्दोलन “महाशय, धर्मस्नेहपूर्वक जुहारु । आपका ता. शुरू किया था और उन्हें संघसे बाहर निकाल २६.३-१६ का कृपापत्र मिला । आपका पत्र पढ़डालनेके लिए कमर कसी थी। इसका फल यह नेसे चार बातोंका पता लगता है-एक तो आपको हुआ कि श्वेताम्बरसमाजमें दो बड़े भारी पक्ष जैनधर्मकी उन्नतिकी बड़ी चिन्ता है, दूसरे आप पड़ गये-एक पं० लालनका अनुयायी और दूसरा स्वयं यह मानते हैं कि विधवाविवाह जैन समाजको साधुओंका । यह फूट अभी तक चली आती है अत्यन्त हानि पहुँचानेवाला और जैनधर्मके पवित्र और उसीके कारण उस दिनकी बैठकका काम- आदर्शको मिटानेवाला है, तीसरे आपकी समझमें ढाई बजेतक शुरू न होसका । एक पक्ष चाहता विधवाविवाहके प्रश्नकी चर्चा करना मन्दबुद्धिर
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