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________________ mmmmmmmmmmmmm जैनहितैषी २४६ से जुदा प्रकारके हो गये थे ! जातियोंकी इसीका यह फल था कि एक घरमें जैन, बौद्ध छोटी छोटी संस्थायें भी उसी समय स्थापित और ब्राह्मण-धर्म साथ साथ प्रेमपूर्वक पाले जाते हुई होंगी, ऐसा मालूम होता है । परन्तु अब थे। राजा श्रेणिक बौद्ध थे और उनकी रानी समय बदल गया है। यह सुधारका जमाना है। चेलना जैन थी। यह बहुत ही प्रसिद्ध कथा जब रहन-सहन, वेष-भूषा, भाषा आदि सभी है। ये सम्बन्ध किसीतरह हानिकारक नहीं बातें बदल गई हैं; तब पुराने रीती-रिवाज ही हो सकते । ये हमारे महत्त्वके द्योतक हैं। इनके कैसे स्थिर रहेंगे ? उस समयकी रहन-सहन, बढ़ानेका प्रयत्न करना चाहिए, न कि घटानेका। वेषभूषा, आचार-विचार तो बदल जावें; परन्तु १३ श्वेताम्बर-जैन-कान्फरेन्स । उस समयकी परिस्थितियोंके अनुसार बनाये हुए गत २३. २४ और २५ अप्रैलको श्वेरीतिरिवाज न बदले जावें, इसके समान मूर्खता- ताम्बर जैन कान्फरेन्सका दशवाँ अधिवेशन पूर्ण कार्य और क्या हो सकता है ? इन रिवा- धमधामके साथ हो गया। सभामें दो ढाई जोंमें सबसे प्रधान रिवाज ' ब्याह ' का है। हजार श्रोता उपस्थित होते थे । बाहरसे भी जातियोंके छोटे छोटे टुकड़े हो गये हैं, इस बहतसे लोग आये थे। हमारी दिगम्बरसभाओंके कारण वरके योग्य कन्या और कन्याके योग्य अधिवेशनोंकी अपेक्षा इस कान्फरेन्सके अधिवेशवर नहीं मिलते हैं। जिन जातियोंमें कन्यायें नमें कई एक विशेषतायें थीं। सबसे बड़ी विशेकम हैं, उनमें बेजोड़ ब्याह अधिक होते हैं और षता सभा-शुल्ककी थी । दो, तीन, पाँच और सैकड़ों युवाओंको जीवन भर कुआँरा रहना दश रुपयेके टिकिट थे । साधारण दर्शकोंका पड़ता है। इसके सिवाय कहीं कहीं श्वेताम्बर टिकिट दो रुपयाका था । इससे कमका या वैष्णव कन्यायें लानी पड़ती हैं । इन सब टिकिट कोई भी न था । बिना टिकिटके संकटोंके दूर करनेके लिए दिगम्बरजैनसमाजमें किसीको भी भीतर जानेका आधिकार न था। जातियोंकी भिन्नताके बिना ब्याह होना चाहिए। इस नियमकी पालना भी कड़ाई से होती थी। जहाँ रोटी-व्यवहार है वहाँ बेटी-व्यवहार भी टिकिटोंसे सुनते हैं कि लगभग छह हजार होना चाहिए । " इसमें श्वेताम्बर और वैष्णवोंकी रुपयेकी आमदनी हो गई ! यदि हमारी महाकन्याओंके साथ विवाह करना अच्छा नहीं सभा या प्रान्तिक सभाके किसी जल्सेमें इस बतलाया गया । परन्तु हम इस सम्बन्धको बुरा प्रकारका प्रबन्ध किया जाय, तो शायद नहीं समझते । अग्रवाल ओसवाल आदि जाति- सभामंडपमें २०० श्रोता भी उपस्थित न योंके समान जो ऐसी जातियाँ हैं जिनमें जैन हों । एक तो बम्बई अहमदाबाद जैसे बड़े शहऔर वैष्णव, अथवा श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों रोंमें रहनेवाले लोग यों ही खर्चीले होते हैं और धर्म पाले जाते हैं उनमें इस प्रकारके सम्बन्ध दूसरे इन स्थानोंमें श्वेताम्बर धनिकोंकी संख्या अकसर होते हैं और ये सम्बन्ध हमें प्राचीन भी अधिक है । यही कारण है जो यहाँ टिकिट भारतकी धार्मिक स्वतंत्रता और उदारताका होने पर भी लगभग दो ढाई हजार श्रोता सभामें आज भी स्मरण कराते हैं । भारतमें एक समय उपस्थित हो गये । हो जायँ, पर यह रीति ऐसा था जब मनुष्य अपनी इच्छानुसार चाहे अच्छी नहीं । कमसे कम जनसमाजमें तो जिस धर्मको पालन करनेके लिए स्वतंत्र था और अभी इसके प्रचलित करनेकी जरूरत नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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