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________________ SELIAARIBAG DAILIBARBALAG २२८ जैनहितषीसे उसको भरकर हवामें छोड़ दिया और देखा उसे उष्ण गैससे परिपूर्ण करके दर्शक-मंडलीके कि वह वायुमंडलमें कुछ दूर तक गई । फिर सामने उड़ाया । वह बहुत ऊँचाई तक गया उन्होंने और भी प्रशस्त प्रणालीके अनुसार उक्त और इस तरह उसने अपनी कृतकार्यताका अच्छा परीक्षा करना प्रारंभ किया और एकबार परिचय दिया। १०५ फुट परिधिवाली एक कपड़ेकी थैलीको सन् १७८३ ई० में योसिओ पिलाने दी घासके घाँसे परिपूर्ण करके हवामें छोड़ दिया। रोजिये नामक एक व्यक्तिने पृथ्वीसे रस्सी आथैली बहुत ऊँचे तक उड़ी, हवामें १० मिनिट दिके द्वारा कोई सम्बन्ध न रखकर सबसे पहले तक स्थिर रही और फिर १॥ मीलकी दूरी पर जा एक मुक्त व्योमयान आकाशमें उड़ाया था। इस गिरी ।ज्योंही यह खबर चारों और फैली त्यों दुःसाहसिक विमानविहारीकी मृत्यु इससे दो ही भिन्न भिन्न लोगोंने भिन्न भिन्न रीतियोंसे वर्ष वाद ३००० फुटकी ऊँचाईसे विमान गिर परीक्षा करना प्रारंभ कर दिया । इसके कुछ पड़नेके कारण हो गई । उसने मरनेके पहले समय पहले सन् १७७६ ई० में सबसे हलके हैड्रोजन और उष्ण वायुकी सहायतासे एक गैस हैड्रोजनका आविष्कार हो चुका था । जब नये ढंगका यान तैयार किया था। उस यास्टीफेन और योसफकी परीक्षाका समाचार नमें दो गोले एक हैड्रोजनसे और दूसरा उष्णपारी पहँचा, तब विज्ञानवेत्ता चार्लस साहबने वायसे भर कर तर ऊपर लगाये गये थे। क्योंकहा कि शीतल वायुकी अपेक्षा गरम वायु कि उसको विश्वास था कि हैड्रोजन गैस हलहलकी होती है और वह हमेशा ऊपर उठनेकी की होनेके कारण स्वभावतः ऊपर उठनेकी चेष्टा किया करती है, इस लिए किसी व्योमयान- चेष्टा करेगी और नीचेके गोलेको गरम करनेमें हैड्रोजन भरकर परीक्षा करनेसे पूर्ण सफलता से उसकी हवा फेलनेकी चेष्टा करेगी । फलतः प्राप्त हो सकती है। अतः१३ फुट व्यासवाले एक यान ऊपर उठेगा और पीछे ज्यों ज्यों वार्निश किये हुए रेशमके व्योमयानको उक्त वह उष्ण वायु ठंडी होती जावेगी, त्यों गैससे परिपूर्ण करके हवामें छोड़ा-वह ३००० त्यों वह भारी होकर नीचेकी ओर आने फुट ऊपरतक गया और प्रायः ४५ मिनिट तक लगेगा। किन्तु ऐसे यंत्रमें जो विपत्ति थी, उसवायुमंडलमें परिभ्रमण करके १५ मील दूरीपर की ओर उसका ध्यान नहीं पहुँचा । इस यानमें जा गिरा ! कहते हैं, जिस जगह यह वायुयान विपद यह थी कि वायुके साथ हैड्रोजन मिलते गिरा-वहाँके किसानोंने इस अनदेखी घटनाको समय यदि अग्निसंयोग हो जाय तो वह आवाकिसी शैतानके आगमनकी सूचना समझा और ज करके एकदम फट जावेगा । आखिर यही इस कारण उन्होंने उसे डरते डरते उठाया और हआ। उसने इस यानको उडाया और वह फिर एक हलसे बाँध कर चारों ओर घुमाया। आध घंटा आकाशमें भ्रमण करनेके बाद इस तरह जब तक वह फट-फटाकर चिन्दी हैडोजनके फटनेसे नष्ट होकर जमीनपर गिर चिन्दी न हो गया तब तक उन लोगोंने चैन पडा और उसके साथ ही विमान-विहारीकी भी नहीं लिया! मृत्यु हो गई। इस घटनाके कई महीने बाद योसफ माण्ट- व्योमयानको इच्छानुसार चलानेके लिए गलाफयेने एक नवीन व्योमयान बनाकर और जिन लोगोंने अपनी अपार शक्ति व्यय की थी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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