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वायुयानोंका इतिहास । animumifinitiffinfifini tion
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शरीरमें लगा कर उन सबको हाथ और पैरोंके इस समय तक आकाशभ्रमणके लिए जितने द्वारा संचालित करनेसे शून्य पथमें उड़ा जा यंत्र बने थे, वे सब पक्षियोंके पंखोंके अनुकरण सकता है । ऊपर चढ़ने के लिए पंखों ( डानों ) पर निर्माण किये गये थे। को फैली हुई दशासे सिकुड़ाना पड़ता है और सन् १६७० ई० में फान्सिस्को डिलानाने फिर नीचे उतरनेके लिए सिकड़े हुए पंखोंको आकाश-नौका या हवाई-जहाज प्रस्तुत करफैलाना पड़ता है। कई लोगोंने कागजकी सहा- नेके लिए एक उपाय लिखा । उसके मतसे यतासे उपरिलिखित प्रणालीके अनसार परीक्षा चार वायुशून्य ताँबेके गोलोंको एक हल्की नौकाकी; परन्तु कोई कृतकार्य नहीं हुआ । इसके के ऊपरी किनारों पर लकड़ी आदिकी. मठमें कछ समय बाद ही फाउष्ट वेराजिने नये
र लंगा कुछ ऊँचाई पर रखना चाहिए और नाव उपायोंके द्वारा इस कार्यमें कई अंशोंमें सफलता
पर पाल भी तान देना चाहिए। ऐसा करनेसेप्राप्तकी । चार बराबरीके लकड़ीके. टुकड़ोंको
" गोले वायुशन्य होनेके कारण ऊपर उठनेकी
चेष्टा करेंगे । ताँबेके गोले कितने बड़े होना चतुर्भुजाकारमें मजबूत कस देनेसे और सघन
चाहिए, इसके लिए उसने हिसाब लगा कर कपड़ेको उसके चारों ओर संयुक्त कर देनेसे छाताके आकारका एक बेलून ( गुब्बारा ) मटाईके गोलोंकी सहायतासे बहुत अच्छी तरह
देखा कि २५ फुट व्यास और २३५ इंच बन जाता है । ऐसे बेलून पर चढ़कर वह वनि- काम निकल सकता है। ऐसे चार वायुशून्य स नगरके एक बहुत ऊँचे स्तंभ परसे जमीन पर गोले प्रायः १५ मन वजन खींच कर ऊपर उतरा था।
ले जा सकते हैं। किन्तु इतने पतले गोलोंका सन् १६७८ ई० में वेनिये नामके एक वायुके दबाबसे एकदम फट जाना बहुत संभव व्याक्तिने अपने दोनों कधों पर दो समानान्तर था । मि० डानने अनेक युक्तियाँ देकर इस लकड़ीके डंडे रखकर उनके दोनों छोरों पर आपत्तिको दूर करनेकी चेष्टा की, परन्तु लोगोंपुस्तकके समान दो परस्पर मिले हुए समतल को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। तख्ते लगा दिये । उक्त दोनों लकड़ीके डंडे सन् १७८३ ई० में लियन नगरके समीपवर्ती ऊपर नीचे करनेसे वे समतल तख्ते एक बार किसी गाँवमें रहनेवाले एक कागजके व्यापारीके खलते और एक बार बंद होते थे। उसने दो पत्र स्टीफेन और योसफ मेंटगलाफयेने इस इसी यंत्रके डानोंको बारबार खोल और बंद बातकी ओर लक्ष्य देकर अनुसन्धान करना करके उड़नेकी चेष्टा की थी।
प्रारंभ किया कि वायुमंडलमें मेघ किस .. कुछ दिनोंके बाद मार्कुई दी वाकेविलने तत्त्वके आधार पर रहते हैं। उन्होंने सोचा कि यदि इस यंत्रमें सुधार किया। वह सन् १७४२ ई० में एक थैलीमें किसी वायवीय पदार्थको भरकर अपने ऊँचे भवनकी छतपरसे उस पर बैठा हवामें छोड़ दें तो वह मेघके समान आकाशमें और समीपवर्ती एक उपवनको लाँघता हुआ तैरती रहेगी। पहले पहल उन्होंने भाफकी सहायसीन नदीके पास जाकर उतरा । इस तरह वह तासे परीक्षा करके देखा; परन्तु इसमें वे सफलमनोइस विषयमें औरोंकी अपेक्षा अधिक कृत- रथ न हुए । फिर उन्होंने एक थैलीको अग्निके कार्य हुआ।
मुँहपर रखकर उससे उठते हुए धुएँ और गैस
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