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________________ २१६ MARATH AMARIBANAAT जैनहितैषीHAImmTTTTTTTTHIDEEIN चन्द्रप्रभकी प्रशस्तिके अनुसार गुणनन्दिके ऊपर यह कहा ही जा चुका है कि शक शिष्य अभयनन्दि और उनके वीरनन्दि हैं। संवत् ९४७ में वादिराजने वीरनन्दिका उल्लेख जान पड़ता है उन्हीं गुणनंदिकी परम्परामें ही किया है । अतएव इससे पहले शक संवत् ९०० पूर्वोक्त कनकनन्दि हैं । अर्थात् गुणनंदिके ३०० या विक्रम संवत् १०३५ के लगभग वीरनन्दिका शिष्योंमेंसे जिस तरह एक देवेन्द्र होंगे उसी समय समझना चाहिए । विक्रमकी ग्यारहवीं प्रकार अभयनन्दि भी होंगे। देवेन्द्रके शिष्य । शताब्दिके प्रारंभमें वे इस धरामण्डलको सुशोकनकनन्दि हुए और अभयनन्दिके वीरनन्दि हुए। __आचार्य नेमिचन्द्रकी लिखावटसे जान पड़ता मित करते थे। है कि वीरनंदि, इंद्रनन्दि अभयनन्दि, कनकनन्दि वीरनन्दि नामके अनेक विद्वान् हो गये हैं। आदि सब उनके समकालीन थे। अतएव यदि एक वीरनन्दि 'आचारसार ' नामक यत्याचारनेमिचन्द्रका समय मालूम हो जाय तो लगभग ग्रन्थके प्रणेता भी हैं; बृहद्व्यसंग्रहकी भूमिकामें वही समय वीरनन्दिका सिद्ध हो जायगा। पं. जवाहरलालजी शास्त्रीने उन्हें और चन्द्रप्र___ गोम्मटसारकी अन्तिम गाथाओंसे मालूम होता भकाव्यके कर्ताको एक ही बतला दिया है; है कि नेमिचन्द्र आचार्यने यह ग्रन्थ चामुण्ड, परन्तु यह भ्रम है । वे मेघचन्द्र विद्यदेवके रायकी प्रेरणासे बनाया था और चामुण्डरायने शिष्य थे जिनका कि स्वर्गवास शक संवत् स्वयं इस ग्रन्थकी एक कर्णाटकी-वृत्ति बनाई १०३७ में हुआ था । एक वीरनन्दिका जिकर थी । अतः चामुण्डरायके समयमें ही नेमिचन्द्र श्रवणबेल्गुलके ४७ वें शिलालेखमें है; परन्तु हुए हैं, यह निर्विवाद है। वे महेन्द्रकीर्तिके शिष्य थे। चामण्डराय गंगवंशीय राजा राचमल्लके महाकवि वीरनन्दिका केवल एक चन्द्रप्रभप्रधान मंत्री और सेनापति थे । राचमल्लके भाई चरित नामका काव्य उपलब्ध है । उन्होंने इसके रक्कस गंगराजने शक संवत् ९०६ से ९२१ सिवाय और कोई ग्रन्थ रचा या नहीं, इसका तक राज्य किया है और शायद रक्कस गंगरा- पता नहीं। जके बाद ही राचमल्लको सिंहासन मिला था। इस ग्रन्थकी अन्तप्रशस्तिसे और आचार्य कनडीभाषाके प्रसिद्ध कवि रन्नने शक संवत् नेमिचन्द्रने उन्हें जिन शब्दोंमें स्मरण किया है ९१५ में 'पुराणतिलक' नामक ग्रन्थकी रचना उनसे, मालूम होता है कि वे केवल कवि ही की है और उसने आपको रक्कस गंगराजका नहीं थे-अखिल वाङ्मय पर उनका अधिकार आश्रेित बतलाया है। चामुण्डरायकी भी अपने था, वे सभाओंमें बोलनेवाले अच्छे वक्ता थे और पर विशेष कृपा रहनेका वह जिकर करता है । सिद्धान्तशास्त्रोंके ज्ञाता भी थे । कर्णाटकाकविचरितके कर्त्ताने चामुण्डरायका जन्म कविने अपने स्थानादिका उल्लेख कहीं भी शक संवत् ९०० के लगभग बतलाया है। इन सब नहीं किया है । तो भी जान पड़ता है कि वे बातोंसे शक संवत् ९०० के लगभग चामुण्डरायका कर्णाटकप्रान्तके ही रहनेवाले होंगे । क्योंकि समय सिद्ध होता है और यही समय नेमिचन्द्र नेमिचन्द्र, चामुण्डराय आदि सब उसी प्रान्तमें सिद्धान्तचक्रवर्तीका भी समझना चाहिए । हुए हैं। नोट--सम्पादकने यह लेख पं. उदयलालजी * बृहदाव्यसंग्रहकी भूमिकामें साहित्यशास्त्री पं० जवाहरलालजीने नेमिचन्द्रका समय शक संवत् ६०० काशलावाल द्वारा त्र काशलीवाल द्वारा प्रकाशित हिन्दी-चन्द्रप्रभचरितसिद्ध किया है। परन्तु उसमें जो प्रमाण दिये गये हैं. की भूमिकाके लिए लिखा था; उपयोगी समझवे सब ऊँटपटाँग हैं-उनमें कोई तथ्य नहीं। कर हितैषीमें भी प्रकाशित कर दिया जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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