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________________ 心 २१२ जैनहितैषी - अँगरेजी अन्य भाषाओं की तरह क्यों न पढ़ाई जाय ? इस विषय में भी हमें कई कठिनाइयोंका साम्हना करना होगा । कालेजोंकी उच्चशिक्षा अभी मातृभाषाओं में नहीं दी जा सकती। यदि हाईस्कूलों में शिक्षा अँगरेजीमें न दी जायतो क्या कालेजों की शिक्षा उसके द्वारा आसानसे प्राप्त की जासकेगी ? यथार्थमें इस विष यमें अधिक वादविवाद न करके समय ही की प्रतीक्षा करनी चाहिए । शिक्षापद्धतिके विषयमें भी बहुत कुछ सुधार करनेकी आवश्यकता है । कई विषय यथा - भूगोल इतिहास स्कूलोंमें बुरी रीतिसे पढ़ाये, जाते हैं । पहाड़ों और नदियोंके नाम तथा इतिहासकी तारीखें रटते रटते विद्यार्थियोंका जी ऊब आता है । विद्यार्थियों को इन विषयोंसे अभिरुचि उत्पन्न करानेका उद्देश्य शिक्षकोंको अपने सामने रखना चाहिए। शिक्षाको व्यवहा रोपयोगी बनाना हमारा कर्तव्य है । इस समयका बड़ा भारी प्रश्न शिक्षाका विस्तार है । देशमें अशिक्षाका राज्य फैला हुआ है। समाजको इससे बढ़कर हानि और क्या हो सकती है, जब कि अज्ञानमें हम इतने डूबे हुए हैं कि सौमेंसे ८० मनुष्योंको काला अक्षर भैंसे के बराबर है। तब बताओ उन्नति किस भाँति हो सकती है ? उन्नतिके जितने रास्ते हैं उन सबमें सबसे पहली और भारी अड़चन जनसमूहका अशिक्षित होना है । मानसिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक उन्नति होनेका सर्वप्रधान उपाय शिक्षा ही है। निरक्षरताके समान देशका दूसरा भयानक शत्रु कोई नहीं है। इसलिए राजा और प्रजा दोनोंका कर्तव्य है कि जिस भाँति हो सके शिक्षाका विस्तार किया जाय। नैतिक शिक्षाका प्रश्न भी बड़े महत्त्वका है। परंतु नैतिक शिक्षाका मतलब हमें भलीभाँति Jain Education International बाल समझ लेना चाहिए । नैतिकशिक्षाका मतलब पुस्तकें पढ़ लेना ही नहीं है । चरित्रगठन करने - के लिए अच्छी आदतें डालना ही सबसे अच्छा उपाय है । यह बात निस्संदेह सत्य है कोंके सामने अच्छे आदर्श रक्खे जायँ; परंतु बालकोंकी आदतोंको सावधानी से देखना भी आवश्यक है । हमारे देशमें ज्योंही माता पिताओंने लड़केका नाम स्कूल में भर्ती करा पाया कि वे उसकी ओरसे बिलकुल निश्चिंत हो जाते हैं । यह बात ठीक नहीं है। यदि तुम बालककोंको २४ घंटे गुरुके सामने नहीं रख सकते तो जितने समय तक वह पाठशालामें नहीं है तुम्हीं उसके जिम्मेदार हो । प्रत्येक माता पिताका कर्तव्य है कि वह अपने बालकों के आचरण पर दृष्टि रक्खे । हमारे युवाओं का बड़ा भारी दोष यह है कि वे आलसी हो जाते हैं। अपना काम खुद करने की तो उनमें हिम्मत ही नहीं रहती । उसका सबब कुछ तो यह है कि विद्यार्थी समझते हैं कि अँगरेजी पढ़कर बाबू बनेंगे, खूब तनख्वाह मिलेगी - काम करना तो कुलीगिरी है । अक्सर माता पिता भी इस विषय में लापरवा रहते हैं । वे कहते हैं लड़का तो पढ़ता है बाजारका काम न लेना चाहिए। यह बड़ी गल्ती है । दूसरा कारण बोर्डिंगहाउसोंकी अव्यवस्था है जहाँ विद्यार्थियों को पानी भी बहुधा नौकर ही पिलाते हैं । इनके सिवाय और भी कई कारण हैं । यथा ( १ ) मानसिक श्रमकी अधिकता ( २ ) विषय विभागमें ऐसा कोई विषय नहीं जिसमें शारीरिक श्रम करना पड़े ( ३ ) परीक्षाफलोंकी कड़ाई ( ४ ) शारीरिक खेल कूदमें योग न देना । हमें आवश्यक है कि अपने बालकोंकी इस बुरी टेव पड़ जाने के कारणोंको देखें और उन्हें दूर करें । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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