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________________ जैनहितैषी - , उनके पट्टपर क्रमशः भावसेन, सहस्रकीर्ति, वीं शताब्दिमें हुए हैं जो सकल सिद्धान्तके पारगामी कहलाते थे । साथ ही यह भी मालूम होता है कि कनकनन्दि भी नेमि - चंद्रके गुरु थे और उन्होंने ' सत्वस्थान नामका कोई ग्रंथ बनाया है । श्रवणबेलगोलके शिलालेख नं० ४० में भी एक ' कनकनन्दि ' का जिकर आया है और उसमें उन्हें माघनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य गण्डविमुक्त देवके बड़े भाई बतलाया है । साथ 1 ही उनकी प्रशंसा में यह पद्य भी दिया है: गुणकीर्ति, यशःकीर्ति और जिनचन्द्रका प्रतिष्ठित होना लिखा है । जिनचंद्रका शिष्य श्रुतकीर्ति साधु और श्रुतकीर्तिका शिष्य बुध राघव हुआ । इसके बाद राघवके तीन शिष्य प्रगट किये हैं; एक रत्नपाल, दूसरा श्रीवनमालि और तीसरा कान्हरसिंग और अन्तमें अपनेको कान्हरसिंहका पुत्र ‘लालमणि' लिखा है । इस परिचयका आदिम पद्य इस प्रकार है:श्रीमच्छ्रासं मुनिगणगणनातीतदिग्वस्त्रष्टे, -- १९४ तस्मिच्छ्रीमाथुराख्ये वृषभवृषयुते गच्छश्रेष्ठाधिपूज्ये । तन्मध्ये सर्वश्रेष्ठे परमपद प्रदे पुष्कराख्ये गणेच, लोहाचार्यान्वये च विगतकलु पिता संयतानेक जाताः ॥ ११ ॥ ( ३५ ) कनकनन्दि और इन्द्रनन्दि | ' गोम्मटसारके ' कर्मकाण्डमें श्रीमने मिचंद्राचार्यने लिखा है कि:वरददिगुरुणो पासे सोऊन सयल सिद्धतं । सिरिकणयदिगुरुणा ——- सत्ताणं समुद्दिद्धं ॥ ३९६ ॥ " अर्थात् - इंद्रनन्दि गुरुके पाससे सकल सिद्धान्तको सुनकर श्री कनकनन्दि गुरुने सत्वस्थानका कथन किया । इससे मालूम होता है कि एक इन्द्रनन्दि विक्रमकी ११ Jain Education International यो बौद्धक्षितिभ्रत्कराल - कुलिशाकमेघानलोमीमांसामतवर्त्तिवादिमदवन्मातङ्गकण्ठीरवः । स्याद्वादाव्धिशरत्समुद्गतसुधारोचिस्समस्तैस्स्तुतःस श्रीमान् भुवि भासते कनकनन्दी ख्यातयोगीश्वरः ॥ इस शिलालेख और शिलालेख नं० ३९ में गण्डविमुक्तदेवके शिष्य महामंडलाचार्य देवकीर्तिके स्वर्गवासका उल्लेख किया गया है जो शक संवत् १०८५ में हुआ है और जिसकी यादगारमें ये दोनों शिलालेख देवकीर्तिके शिष्यों द्वारा एक ही पत्थर पर खुदवाये गये हैं । इस शिलालेख के ' कनकनन्दि, और नेमिचंद्र के गुरु 'कनकनन्दि ' दोनोंका समय अनुमानसे एक ही बैठता है । बहुत संभव है कि ये दोनों कनकनन्दि एक ही व्यक्ति हों । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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