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________________ स्त्री-संसार। ४५ होते हैं। ये पुरुष ही उनकी अज्ञानता, स्वदारसन्तोषी या एकपत्नीव्रतका धारण भोलेपन, अदूरदर्शिता, हृदयकी कोमलता करनेवाला बनना भी आवश्यक है । यदि आदि बातोंसे लाभ उठाकर उन्हें पापके पुरुषसमाज इतना समझने लगे तो वह स्वयं कुएमें ढकेल देते हैं। यदि आज पुरुषसमाज सदाचारी बन जाय और उसके साथ साथ सदाचारी और संयमी बन जाय तो स्त्रीसमाज स्त्रियाँ भी अपने चरित्रको सुरक्षित रख सकें। तो स्वभावतः सदाचारी है, उसके सुधारनेमें पुरुषोंकी जिन सभाओंमें आज स्त्रियोंके पातिजरा भी देर न लगे । परन्तु यह तब हो व्रतसम्बन्धी व्याख्यान होते हैं, उनमें यदि जब पुरुष स्त्रीनिन्दा करना छोडकर अपने पुरुषोंके 'एकपत्नीव्रत' पर जोर दिया हृदयका टटोलना और उसके साथ स्त्रीहृद- जाय, तो बहुत कुछ लाभ हो सकता है। * * * * * यका मिलान करना सीखें। " पुरुष स्त्रियोंकी निन्दा जी खोलकर पुरुषसमाज स्त्रियोंको सदाचारिणी पति र कर चुके हैं। जितनी निन्दा हो चुकी है, उससे अधिक और हो नहीं सकती। अब परायणा बनानका निरन्तर प्रयत्न करता स्त्रियोंकी वारी है । सौभाग्यसे अब स्त्रियाँ रहता है। आजकलकी सभा समितियोंमें भी शिक्षिता होने लगी हैं। उन्हें चाहिए कि इस विषयमें खूब ही व्याख्यान दिये जाते हैं। अब वे भी पुरुषोंके इस अत्याचारका बदला यहाँतक कि जिस सभामें केवल पुरुष ही वक्ता . चुकानेके लिए कटिबद्ध हो जायँ । इस और श्रोता होते हैं उसमें भी पातिव्रतके कार्यमें उन्हें विशेष श्रम न करना पड़ेगा और आदर्श स्त्रियोंके चरित्रके जोशीले और उनका यह कार्य अनुचित भी व्याख्यान दिये जाते हैं । आप जानते हैं नहीं कहा जा सकता । क्योंकि इस समयका कि इसका कारण क्या है ? यह नहीं कि पुरुषसमाज वास्तवमें ही निन्दाके योग्य है । पुरुष स्त्रियोंको समाजका कोई अंग समझते उसकी जितनी निन्दाकी जाय उतनी थोड़ी हों या उनके सुख दुखकी उन्हें विशेष है। इससे स्त्रीसमाजको लाभ भी होगा। वे चिन्ता हो । स्त्रियाँ परुषोंकी गलाम हैं- पुरुषोंके छल कपटोंको जानने लगेंगी और दासियाँ हैं । जैसे एक मालिक चाहता उनसे बचे रहनेका प्रयत्न करने लगेंगी।" है कि मेरा नौकर सदाचारी हो, वह ये एक स्त्रीके वाक्य हैं । एक स्त्रियोपयोगी सदाचारी होगा तो मेरा काम अच्छी मासिक पत्रमें उसकी सम्पादिकाने इन्हें लिखा तरह करेगा-मझे कोई भय नहीं रहेगा, था । पुरुषोंकी लज्जा रखनेवालीं और उनको उसी तरह स्वार्थी परुष चाहता है कि मेरी स्त्री चरित्र सिखानेवाली कोमल स्त्रियोंके द्वारा ऐसा पतिव्रता हो तो वह मेरी गुलामी अच्छी होना हम उचित नहीं समझते हैं-( यद्यपि तरह कर सकेगी । वह यह नहीं समझता है पुरुष इस शासनके सर्वथा योग्य है )-परन्तु कि स्त्रीको पतिव्रता बनानेके साथ साथ मुझे पुरुषोंको सावधान कर देना हमारा कर्तव्य है। Jain Education international For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522822
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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