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________________ जैनहितैषी - ४० यह नहीं नापसकते । केवल इस बलकी और बाँटों पर जो बल पृथ्वी लगाती है उसकी तुलना की जाती है। पहाड़ पर जानेसे इस वस्तुपर पृथ्वीका बल घट जायगा तो बाँटोंपरका बल भी तो कम हो जायगा -उन दोनोंहीका भार घट जायगा और साधारण तराजू से वे दोनों वहाँ भी बराबर निकलेंगे । वि [० - अच्छा, इस कॉंटेमें एक ही वस्तुका भार नापा जाता है और तराजूमें एक वस्तुके भारकी बाँटोंके भारसे तुलना की जाती है । अब समझमें आया। किन्तु क्या भार भी घट बढ़ सकता है ? I मा० - जब भार पृथ्वीके आकर्षणके बलका ही नाम ठहरा तो उसके बदलनेमें क्या आश्चर्य है ? हाँ, वस्तु उतनीकी उतनी ही रहती है । दो सेर गेहूँ के दाने गिनलो, ले जानेसे दानोंकी गिनती में अंतर नहीं होगा-प्रत्येक दानेकी लम्बाई मुटाई में भी अंतर न होगा; परन्तु भार अवश्य कम हो पहाड़पर जायगा । वि०-जो परमाणु थे वे थोड़े ही कहीं चले जावेंगे, केवल दूरीके कारण पृथ्वीका आकर्षण कम हो जायगा । एक बात और · बताइए । क्या जिसप्रकार सुई भी चुम्बकको अपनी ओर खींचती है, उसही प्रकार यह वस्तु भी पृथ्वीको अपनी ओर खींचती है ? मा० - इसमें क्या संदेह है, यह तो संसारका नियम ही है । यदि कोई तुम्हें खींचता है तो तुम भी उसे खींचोगे । यदि तुम Jain Education International किसीपर प्रेम रक्खोगे तो वह भी तुमपर प्रेम रक्खेगा । वि०- फिर पृथ्वी उसकी ओर क्यों नहीं जाती ? मा० - सुईकी ओर चुम्बक क्यों नहीं आता ? क्या जिस बलसे यह वस्तु खिंच जाती है उतने ही बलसे पृथ्वीके समान बड़ी वस्तु भी खिंच सकती है ? वि०–हाँ, सो तो सत्य है; परन्तु पृथ्वी तो इन्हीं लोहा पत्थर इत्यादिसे बनी है । फिर यदि यह वस्तु पृथ्वीको खींच लेती है तो लोहे के टुकड़ेको अथवा पत्थर इत्यादिको भी तो खींच लेगी । मा० - अवश्य । वि०- परन्तु ऐसा तो कभी सुना नहीं गया कि एक पत्थरका टुकड़ा दूसरे टुकड़ेको खींच ले । मा० - सुना नहीं गया, इसका कारण तो यह है कि ऐसी बारीक बात जानने की किसे फिक्र है ? इसके अतिरिक्त जब सारी पृथ्वीने बल लगाया तब तो इस वस्तुपर इतना बल लगा कि हम हाथसे उठा सकते हैं । यदि केवल एक छोटासा लोहेका टुकड़ा ही आकर्षण करे तो बताओ उसका बल कितना थोड़ा होगा ? इतना थोड़ा बल नापना साधारण मनुष्यका कार्य नहीं । वि०-थोड़ा तो अवश्य होगा; किन्तु फिर भी क्या कोई उपाय नहीं ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522822
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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