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________________ का अप्रतिष्ठित प्रतिमा पूज्य है या नहीं? ) कर सकते हैं और इसी लिए वे प्रतिमापूजन सीढी है । जब यह सिद्ध हो गया कि प्रतिआदि न भी करें तो उनके लिए कोई हानि मा-पूजनसे जैनधर्मकी मंशा प्राणियोंको शान्ति नहीं । दूसरे मार्गके उपासक गृहस्थ लाभ कराना है, तब यह देखना चाहिए कि हैं । वे सारे दिन घरगिरिस्तीके काम-धन्दोंमें उसकी इस मंशाको प्रतितिष्ठित प्रतिमायें ही लगे रहते हैं। उन्हें अपने भावोंके पवित्र क. पूरा कर सकती हैं या अप्रष्ठित प्रतिमाओंसे रनेके साधन बहुत कम मिलते हैं। इस लिए भी काम चल सकता है ? हमने जहाँ तक उन्हें घरगिरिस्तीके कामोंसे सारे दिनमें जितना इस विषयपर विचार किया है, हमारा विश्वास कुछ थोड़ा या बहुत समय मिले, उसमें वे इस बातसे इन्कार नहीं करता कि अप्रऐसा अभ्यास करें, जिससे दिनोंदिन उनके तिष्ठित प्रतिमायें भी शान्ति प्राप्त करनेकी भावोंमें पवित्रता बढ़ती जाय और धीरे धीरे साधिका हैं । हमें प्राप्त करना है वीतरागतावे भी स्वतंत्ररूपसे आत्म-ध्यान कर शान्ति और यह जैसी ही प्रतिष्ठित प्रतिमासकें। इसी विकाश या उन्नतिका साधन ओंके ध्यानादिसे हो सकती है वैसी ही प्रतिमाराधन है। इसे छोड़कर प्रतिमा-पूजनसे अप्रतिष्ठित प्रतिमाओंसे भी। तब हम नहीं कह जैनधर्मका और कोई मंशा नहीं जान पड़ता। सकते कि केवल प्रतिष्ठित प्रतिमाके पूजनको . ही इतना महत्त्व क्यों दिया गया ? ___ रही प्रतिमापूजनके महत्त्वकी बात, सो यह स्पष्ट है कि शान्ति सभी चाहते हैं और हमने इस विषयका जिकर समाजके एक दुःख या आकुलतासे सब घबराते हैं । यह दो विचारशील विद्वानोंसे भी किया । वे भी ऊपर लिखा जा चुका है कि योगियोंके दर्श- हमारे इन विचारोंके बहुत अंशोंमें अनुकूल नसे भावोंमें शान्ति पैदा होती है, इस लिए हुए । उन्होंने प्रतिष्ठित प्रतिमाको महत्त्व कि वे स्वयं भी शान्त हैं। तब यह कहनमें भी देनेका कारण केवल प्रसिद्धि बतलाया। कोई हर्ज नहीं कि उन्हीं तपस्वी ध्यानी उन्होंने इस विषयमें उदाहरण दिया कि यदि योगियोंकी सी वीतराग शान्त मूर्तियाँ भी हृदय गवर्नमेंट किसीको ‘ रायबहादुर' आदिकी पर अपनासा प्रतिबिम्ब डालकर उसमें वैसी ही पदवी प्रदान करती है तो उसके समाचार शान्त भावनायें पैदा करेंगीं। यही कारण है कि पेपरोंमें प्रगट किये जाते हैं, सर्वसाधारण जैनधर्मने अपनी प्रतिमाओंको बहुत शांत बनाया तक उसकी खबर पहुँचाई जाती है और है। क्योंकि जैनधर्मका अन्तिम ध्येय ही यह है उत्सव आदि किये जाते हैं । यह सब क्यों ? कि संसारके जीवमात्र कर्मोंसे मुक्ति लाभकर विचार करनेसे निष्कर्ष निकलता है कि परम शान्ति प्राप्त करें । उसी परम शान्तिके केवल प्रसिद्धके लिए । अन्यथा जिसे पदवी मार्ग पर चलनेकी यह प्रतिमा-पूजन पहली दी गई, उसे गुपचुप एक पत्र द्वारा सूचना दे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522822
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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