SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४० जैनहितैषी आठ आने । यह उपदेशरत्नमाला नामक हिन्दी पुस्तकका भाषान्तर है, जिसकी समालोचना हितैषीमें पहले हो चुकी है। - समयसार नाटक । प्रकाशक, जैन औद्योगिक कार्यालय, चन्दावाड़ी, बम्बई । मूल्य आठ आना । कविवर बनारसीदासनीके समयसारकी यह नई आवृत्ति है । पुस्तकमें अशुद्धियोंकी भरमार है। संशोधनकी ओर ध्यान देना प्रकाशकका सबसे मुख्य कर्तव्य था । छपाई वगैरह अच्छी है। ___ सागारधर्मामृत ( पूर्वार्द्ध)। अनुवादक, पं० लालारामजी अध्यापक, इन्दौर । प्रकाशक, शा मूलचन्द कसनदासजी कापड़िया, सूरत । मूल्य १॥ रु० । कापडियाजीने अब तक जितने ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं उनमें यही एक ग्रन्थ महत्त्वका निकला है। पं० आशाधार बड़े नामी विद्वान् थे । उन्होंने श्रावकाचारके ग्रन्थोंका अच्छी तरह मनन करके यह ग्रन्थ लिखा है। इसमें अनेक बातें ऐसी हैं जो दूसरे ग्रन्थोंमें नहीं मिलतीं । अनुवादकी भाषा सरल और प्रायः शुद्ध है। स्थानकवासी जैन कान्फरेंस प्रकाशका खास अंकस्थानकवासी जैन कान्फरेंसकी ओरसे एक साप्ताहिक पत्र निकलता है । पत्रकी मुख्य भाषा गुजराती है। कई लेख हिन्दीमें भी रहते हैं। डा० धारसी गुलाबचन्द संघाणी इसके सम्पादक हैं। वार्षिक मूल्य ढाई रुपया है । उसका यह खास अंक पर्युषणपर्वके उपलक्ष्यमें निकला है । जैनमित्रके आकारके लगभग १७५ पृष्ठ हैं। इसमें हिन्दीके २३, अँगरेजीके ५, मागधीका १ और गुजरातीके ६९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy