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________________ . ६७२ जैनहितैषी mmmmmmm हैं, उनका चरित्र ऊँचा होता है, जैनधर्ममें उन्हींको पूज्य बताया है, इसके विरुद्ध आजकलके साधु बहुत ही शिथिलाचारी हैं, उनकी उपासना कदापि न करना चाहिए; मुख्यतः इन्हीं बातोंका इस ग्रन्थमें प्रतिपादन किया गया है। जबसे इस ग्रन्थकी भाषावचनिका हुई है और स्वाध्याय करनेवालोंमें इसका प्रचार हुआ है तबसे यह दिगम्बर सम्प्रदायका ही ग्रन्थ समझा जाने लगा है । लोगोंको इसके दिगम्बर ग्रन्थ होनेमें अणुमात्र भी सन्देह नहीं है; परन्तु वास्तवमें यह एक श्वेताम्बर सम्प्रदायके विद्वान्की रचना है। मोक्षमार्गप्रकाशमें पं० टोडरमलजीने एक जगह · संघपट्टक' नामक श्वेताम्बर ग्रन्थका एक श्लोक उद्धृत किया है । जब यह ग्रन्थ छप रहा था, तब प्रूफ संशोधन करते समय मैंने देखा कि संघपट्टकका उक्त श्लोक अशुद्ध है। मेरे पास मोक्षमार्गकी जो प्रतियाँ थीं, जब उनसे श्लोकका पाठ शुद्ध नहीं हुआ तब मैंने संघपट्टककी खोज की और सौभाग्यवश मुझे वह छपा हुआ मिल गया, जिससे उक्त श्लोक शुद्ध कर दिया गया । उसी समय मैंने संघपट्टककी विस्तृत भूमिका बाँची जिसमें संघपट्टकके टीकाकार जिनपतिमृरिके शिष्य नेमिचन्द्र भण्डारी और उनके षष्ठिशत प्रकरण,' नामक ग्रन्थका उल्लेख पढ़कर मुझे सन्देह हुआ कि उपदेशसिद्धान्तरत्नमालाके कर्ता और जिनपतिसूरिके शिष्य नेमिचन्द्र भण्डारी एक ही होंगे और आश्चर्य नहीं जो षष्ठिशत प्रकरणका ही नाम उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला रख दिया गया हो । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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