SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला और षष्ठिशतप्रकरण। ६७९ wmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm इस पुस्तकका उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला, यह नामकरण किया है। उन्हें धर्मदासगणिकी उपदेशमालाका परिचय न रहा होगा । ग्रन्थभरमें ये ही चार गाथायें ऐसी हैं जो इसको बहुत स्पष्टता और दृढताके साथ श्वेताम्बर ग्रन्थ सिद्ध कर सकती हैं। अन्यथा सारे ग्रन्थमें ऐसे साधारण और व्यापक उपदेश हैं कि उन्हें दिगम्बरसम्प्रदायवाले अपने शिथिलाचारी परिग्रहधारी भट्टारकोंके लिए और श्वेताम्बरसम्प्रदायके विधिमार्गानुयायी अपने चैत्यवासी शिथिलाचारी साधुओं तथा यतियोंके लिए समानरूपसे समझ सकते हैं। ऐसे शब्द कठिनाईसे मिलेंगे जो केवल श्वेताम्बर सम्प्रदाय पर ही लागू हो सकते हैं और जो हैं वे ऐसे हैं कि उनका अर्थ सहज ही बदला जा सकता है। विक्रमकी बारहवीं शताब्दिके लगभग श्वेताम्बर सम्प्रदायके साधुओंमें इस तरहका शिथिलाचार बहुत बढ़ गया था जो किउक्त सम्प्रदायके सिद्धान्तानुसार निषिद्ध है। जहाँ तहाँ शिथिलाचारी साधुओंका ही जोरशोर था । उस समय श्रीजिनवल्लभसूरि आदि विद्वान् ऐसे लोगोंके विरुद्ध खड़े हुए और उन्होंने इस विषयका जबर्दस्त आन्दोलन उठाया । संघपट्टक, उसकी टकिा, यह षष्ठीशतक आदि ग्रन्थ उसी आन्दोलनको जागृत रखनेके लिए लिखे गये थे। यह आन्दोलन कब तक जारी रहा और उसका परिणाम क्या हुआ, इसका इतिहास श्वेताम्बर सम्प्रदायमें मौजूद है । अभिप्राय यह है कि षष्ठिशतक ग्रन्थ साधुओंके शिथिलाचारको दूर करनेके लिए ही लिखा गया था और इसी Jain Education International For Personal & Private Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy