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________________ जैनहितैषी ६४६ wwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmam के लिए एक षड्यन्त्र रचा गया । शत्रुओंने उसको उन्नतिके शिखरसे केवल गिरा ही नहीं दिया किन्तु उसका एक फौजदारी मुकद्दमेंसे सम्बन्ध कराकर उससे भारी जुर्माना दिलवाया । सन १८१७ ईस्वीमें पिण्डारियोंके सर्दार अमीरखाँके साथ साजिश करनेका झूठा दोष उसपर लगाया गया । यद्यपि उसके मित्रोंने उसकी रक्षाके लिए बहुत कुछ प्रयत्न किया परंतु कुछ लाभ न हुआ। उसके शत्रुओंकी बन आई और वह वेचारा निरपराध अत्यन्त निर्दयतासे मार डाला गया। , -नाथूराम जैन, लखनऊ। मुकद्दमेबाजीके दोष । भारतवासियोंकी आजकलकी निर्धनता और दरिद्रताका एक कारण हदसे ज्यादा मुकद्दमेबाज़ी भी है। जिन लोगोंको ऐतिहासिक ग्रंथोंके पढनेका अवसर प्राप्त हुआ है वे जानते हैं कि प्राचीन समयमें भारतवासी इस दोषसे कितने रहित थे । एक चीनी तीर्थयात्री सातवीं शताब्दीमें भारतवर्षकी यात्रा करके जब लौट कर अपने देशमें गया; तब वह भारतवासियोंके विषयमें ऐसा कहता था कि “ भारवासी झूठ बोलना महापाप समझते हैं इस लिए वे बिलकुल झूठ नहीं बोलते।" इस बातको उसने स्वरचित एक पुस्तकमें भी लिख दिया है । प्रोफेसर मेक्समूलर साहबने ( जो यूरोपमें बड़े भारी संस्कृतके विद्वान् और भारत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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