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________________ ज्वालापुर महाविद्यालय और गुरुकुल कांगड़ी। ६११ -~ ہیں ، عمره خودرو را تو وہ بیس __ दूसरी संस्थाका नाम गुरुकुल कांगड़ी है। यह बहुत पुरानी और बड़ी संस्था है। इसके देखनेकी इच्छा हमारे मनमें वर्षोंसे थी। हरिद्वारसे दो मीलके अंतर पर कनखल है। कनखलसे गंगापार करके पैदल सैर करते हुए गंगाकी घाटियों से होते हुए हम गुरुकुल पहुँचे । रास्तेमें ऐसे जंगल पड़ते हैं कि कहीं मनुष्यकी परछाई मी दिखलाई नहीं देती। वास्तवमें गुरुकुल जैसी संस्थाका ऐसे ही स्थान पर होना उपयुक्त है। ___ गुरुकुलकी इमारतसे बाहर, बाहरसे आये हुए लोगोंके लिए एक धर्मशाला बनी हुई है । उसीमें हम ठहरे। थोड़ी ही देर हुई थी कि इतनेमें गुरुकुलका चपरासी आया और उसने हमसे स्नान वगैरहके लिए कहा। हम स्नान ध्यान वगैरहसे निवृत्त होकर डेरेसे चले थे। तब वह हमको बड़े प्रेमके साथ भोजनशालामें ले गया । भोजनशालामें हमारा पहुँचना था कि वहाँके प्रबंधकोंने बिना किसी प्रकारकी जान पहिचानके हमारा बड़ा आदर सत्कार किया और बड़े प्रेमके साथ हमको भोजन कराया। कुछ ब्रह्मचारी लोग भी हमारे साथ भोजन कर रहे थे । भोजन सादा, हल्का और बलबर्धक था । दाल तरकारीमें स्वास्थ्यको बिगाड़नेवाले मसाले नहीं थे । सबसे उत्तम पदार्थ जो देखनेमें आया वह मीठा शुद्ध दही था। मीठा दही कितना रुचिकर और लामदायक होता है इसके कहनेकी आवश्यकता नहीं । दही छाँछ मल वगैरह पदार्थ यहाँ उमदा और ज्यादह मिलते हैं। शहरोंमें अछ अच्छे अमीर लोग भी इनके लिए तरसते हैं। मिठाइयाँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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