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पुस्तक-परिचय। .
हिन्दूजाति मर रही है-लेखक, श्रीयुक्त माँगी- लालजी पाटणी और प्रकाशक, श्रीयुक्त ब्रजमो
- हनलालजी वर्मा छिन्दवाड़ा ( सी. पी.) । मूल्य दो आना । यह डाक्टर यू. एन. मुकर्जीके एक अँगरेज़ी निबन्धका हिन्दी अनुवाद है। निबन्ध प्रधानतः बंगालप्रान्तको लक्ष्य करके लिखा गया है, तो भी इससे सारे देशके हिन्दुओंकी दशाका अनुमान होसकता है। इसमें बतलाया गया है कि हिन्दुओंकी संख्या बराबर घट रही है । सन् १८७२ में मनुष्यगणनाके अनुसार बंगालमें हिन्दुओंकी संख्या १ करोड ७१ लाख और मुसलमानोंकी संख्या १ करोड ६७ लाख थी, अर्थात् मुसलमान हिन्दुओंसे ४ लाख कम थे; परन्तु आगे मुसलमान बढ़ते गये और हिन्दू उनसे कम होते गये । सन् १९०१ में जो मनुष्यगणना हुई उसमें मुसलमानोंकी संख्या २ करोड २० लाख हो गई और हिन्दुओंकी संख्या केवल १ करोड ९४ लाख हुई ! अर्थात् केवल ३० वर्षमें मुसलमान हिन्दुओंसे २५.. लाख अधिक हो गये । यह बड़ी ही चिन्ताका विषय है; परन्तु कट्टर हिन्दुओंका ध्यान इस ओर नहीं है । मुसलमान और ईसाई यहाँ पर बराबर बढ़ते जा रहे हैं। इसका कारण यह है कि प्रतिवर्ष लाखों हिन्दू ईसाई और मुसलमान होते जाते हैं। क्योंकि हिन्दु
ओंकी वर्तमान सामाजिक पद्धति परस्पर प्रेम करना नहीं किन्तु घृणा करना सिखलाती है और इस कारण नीचजातिके हिन्दुओंको
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