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________________ ३८८ जनहितैषी सहायतासे मैं प्राचीन भारतका कथामय इतिहास लिग्वनेको समर्थ हुआ हूँ। बड़ी मेहनतके माथ नियमपूर्वक जमीन खोदनेसे जो सिक्के, शिलालेख, इमारतें, धर्मपुस्तकें, चित्र और बहुत तरहकी मुतरिक बची ग्वची चीजें मिली हैं उनकी महायतामे हमने प्राचीन ग्रंथों में लिखे हुए भारतीय इतिहासके टाचेकी पति की है. अपने ज्ञानको जो पहले अस्पष्ट था शद्र बनाया है और काटकमकी मजबूत पद्धतिकी नींव डाली है। जेनोंके अधिकारमें बडे बडे पम्नकालय । मटार हैं जिनकी रक्षा करने में बड़ा परिश्रम करते हैं । इन पुस्तकालयाम बहुमूल्य साहित्य भरा पड़ा है जिसकी खोज अभी बहुत कम हुई है। जैन ग्रंथ खास तौर पर ऐतिहासिक और अब एतिहासिक मामले परिपूर्ण हैं । परन्तु साहित्यसंबंधी कथाये बहया त्रुटिपूर्ण होती है. इस लिए सत्यके निणयक दिप परतत्त्वांची खोज की जरूरत है। धनाढ्य जैनांका कर्तव्य : ___ दूसरे समाजीको देखते हए नाममान में मनाता मनुष्यांकी संख्या बहुत बढी चढ़ी है और ये लोग किसी तरहके मार्वजनिक काममें, जो उनको चित्ताकर्षक लगता हो. मुभीत के साथ रुपया खर्च कर सकते हैं । मेरा भाषासंबंधी जान इतना काफी नहीं है कि में साहित्य-ग्रन्यांकी परीक्षा कर मक अथवा उनका सम्पादन कर सकूँ । अतएव मैं एक और विपगके संबंधम. निमका में जनकार हूँ, कुछ कहनेका साहस करता हूँ और मैं कल एजः सम्मतियाँ देता हूँ जिनके अनुसार चलने से यह नमी बहुमूल्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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