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शांति-वैभव ।
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युद्ध है कि जिसमें उसे स्वयं ही लड़ना है और स्वयं ही योद्धा बनना है | इस युद्धमें किराये की फौज से काम नहीं चलता और दूसरोंके लड़नेसे विजय नहीं होसकती । साथ ही इस युद्धसे बचाव भी नहीं होसकता । इस युद्ध से बचना मृत्यु है । यदि बचोगे तो मरोगे और यदि भागोगे तो भी मरोगे । दूसरे मनुष्य तुम्हारी सहायता नहीं कर सकते । उनको अपने बहुतसे काम हैं । बहुतसे झगड़े उनके पीछे लगे हुए हैं । उन्हें इतना अवकाश कहाँ कि तुम्हारी सहायता करें । अतएव तुम्हें स्वयं ही लड़ना होगा और विजय प्राप्त करना होगा । इस युद्ध में विजय पानेके लिए केवल एक उपाय है और वह आत्मनिर्भरताका प्राप्त करना है ।
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जिन बातोंकी कमी तुम अपने में देखो उनको पूरा करने का उद्योग करो । जैसे यदि तुम्हें इच्छा है कि तुम बातचीत करना सीख जाओ तो तुम्हें उचित है कि तुम अपनेको ऐसे कार्योंमें लगाओ जिनमें कि तुम्हें बोलना ही पड़े । यदि तुम्हें कुछ शोक रहता हो और हँसी खुशीसे तुम्हारा समय न बीतता होत तुम्हें चाहिए कि ऐसे मनुष्योंकी संगतिमें बैठो जो हँसमुख हो । ऐसा करनेमें चाहे तुम्हें कितनी ही कठिनाई हो, तुम इसकी कोई परवा मंत करो । यदि तुम देखते हो कि तुममें कोई शक्ति नहीं है, परंतु वही शक्ति किसी दूसरे मनुष्यमें है तो तुम उससे कदापि ईर्ष्या या द्वेष मत करो और न उसे देखकर कभी अपने मनमें कुढो ; किन्तु तुम्हें चाहिए कि तुम उसे देख कर प्रसन्न होओ और इस बातका प्रयत्न करो कि वह मार्ग तुम्हें भी मिल जावे जिससे
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