SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शांति-वैभव । ३९७ पता लगता है कि हममें क्या क्या काम करनेकी शक्ति है, हम क्या क्या कर सकते हैं; परंतु आत्मनिर्भरतासे जिन बातोंकी सम्भावना की जाती है वे कार्यका रूप धारण कर लेती हैं । एक शिल्पकार किसी पत्थरके टुकडेको देखता है । उसका आत्मविश्वास उसको केवल यह बतलाता है कि इसमेंसे एक बड़ी सुंदर मूर्ति बन सकती है; परंतु आत्मनिर्भरता उस पत्थरके टुकड़ेको उसके द्वारा मूर्तिका रूप धारण करा देती है । पहले विश्वास है फिर आत्मनिर्भरता है। पहले किसी कामके करनेकी सम्भावना की जाती है पीछे तद्रूप क्रिया होती है । सम्भावनाका नाम आत्मविश्वास है और अपने लिए तद्रूप क्रियाका नाम आत्मनिर्भरता है। ___जो मनुष्य आत्मनिर्भरता प्राप्त करलेता है वह कहा करता है कि मेरी शक्तियोंका,मेरी सम्भावनाओंका, मेरे सिवाय और कोई अनुमान नहीं कर सकता। कोई मुझे भला या बुरा नहीं बना सकता। मैं स्वयं ही अपनेको भला या बुरा बना सकता हूँ । आत्मनिर्भर पुरुष अपनी आर्थिक, सामाजिक, मानसिक, शारीरिक तथा आत्मिक दशाको आप ही सुधार सकता है । मनुष्यका जीवन कैसा होना चाहिए, यह एक ऐसा प्रश्न है कि जिसको प्रत्येक व्यक्ति आपही विचार करके निश्चय कर सकता है। इसके लिए मनुष्यको अपने बल पर खडा होना चाहिए । दूसरोंका सहारा तकना और उनके भरोसे पर रहना निरर्थक है । प्रकृति इस बातका साक्षात् उदाहरण है। प्रकृतिमें देखिए जो काम स्वयं करनेका है उसको स्वयं ही करना पड़ता है। अपनी जगह दूसरेको भेजनेसे अथवा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy