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यश और पुण्यप्राप्तिकी इच्छा रखनेवाले
दानवीर महाशयो ! यहि आप थोडेसे खर्च में सैकड़ों ग्रंथोंके दान करनेका यशःपुण्य लूटना चाहते हैं तो आइये और इस सूचनाको ध्यान देकर बाँचिये । कि
भारतीयजैनसिद्धांतप्रकाशिनीसंस्था काशीके स्थापन करनेका एक मात्र उद्देश्य यह है कि-जैनियोंके सिवाय देश विदेशोंके समस्त अजैन विद्वानोंमें जैनधर्मसंबंधी उत्तमोत्तम प्रभावशाली संस्कृत, प्राकृत, हिंदी तथा बंगला, अंगरेजी भाषामें विविधप्रकारके ग्रंथ छपा २ कर प्रचार करना अर्थात् मुफ्त देना वा लागतके भावसे देते रहना। जिसकी सिद्धिकेलिये इस संस्थाने प्रथमही तो गवर्नमेंटकी कलकत्ता संस्कृतयूनिवर्सिटीके कोर्समें जैनमतके न्याय व्याकरणादि ग्रंथ भरती कराकर सनातनजैनग्रंथमालाके द्वारा प्रकाशित करना प्रारंभ किया था। सो धाराशिवनिवासी श्रीयुत श्रेष्टिवर्य गांधी नेमिचंद बहाल. चंदजी, वकील आदिकी द्रव्यसहायतासे आगे लिखे ९ ग्रंथ छपाये हैं और अन्यमती विद्वानोंके पास व पुस्तकालयोंमें विनामूल्य सवासवासौ प्रति बराबर भेजते रहे हैं। फिर भी दानी महाशयोंसे सहायता मिलेगी तो श्लोकवात्तिक, पद्मपुराण, न्यायविनिश्चयालंकारादि संस्कृतके महान् ग्रंथ छपा २ कर सर्वसाधारण विद्वानोंमें वितरण किये जायगे। इसके शिवाय अन्य सर्व साधारणमें जैनधर्मके सिद्धांतोंका प्रचार करनेकेलिये हिंदी, बंगला, अंगरेजी आदि भाषाओंमें छोटे बड़े सब ही प्रकार के जैनग्रंथ चुन्नीलालजैनग्रंथमालामें छपा २ कर प्रचार करनेका विचार किया था परंतु द्रव्यसहायता न मिलनेके कारण यह कार्य गत दो वर्षों में कुछ भी नहिं कर पाये। इसकारण इसवर्ष यदि आप लोग थोड़ी २ द्रव्यसहायता दें तो अब इन तीनों भाषाओंमें अनेक ग्रंथ छपा २ कर सर्व देशोंके अन्यमती विद्वानोंमें तथा सर्वसाधारणमें विनामूल्य वितरण करनेका काम बड़े जोरशोरसे चलाया जावे । ___ यह तो आपको रिपोर्ट द्वारा विदित ही होगया होगा कि यह संस्था किसी खास मनुष्यकी नहीं है और न कोई इससे अपना पारमार्थिक प्रयोजनके सिवाय सांसारिक प्रयोजन ही साधन करता है। जिसप्रकार आप लोग धनसे सहायता करके पुण्योपार्जन करना चाहते हैं, उसीप्रकार इस संस्थाके कार्यकर्ता भी यथाशक्ति अपना तन और मन लगाकर परिश्रम करते रहते हैं। इसी कारण अखबारोंद्वारा व विज्ञापनोंद्वारा बारंबार प्रार्थना की जाती है कि और २ धार्मिक
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